गुरु, शिष्य एवं साधक

संत सानिध्यका परिणाम


जिस प्रकार विशेष प्रकार विकिरणसे(रेडिएशनसे)  कर्करोगके ( कैंसरके)कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार संतद्वारा प्रक्षेपित आनंदके स्पंदनसे उनके संग अधिक समय तक रहनेवाले साधकका मनोलय एवं बुद्धिलय हो जाता है और उसका अज्ञान नष्ट होकर, उसे आनंदकी अनुभूति होती है ! संतके सानिध्यमें रहनेसे क्या हो सकता है यह एक उदहारणके माध्यमसे देखेंगे | […]

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खरे संतोंका अभिज्ञान कैसे करें ?


मुझसे लोग पूछते हैं कि इतने सारे ढोंगी गुरु चारों ओर बिलबिला रहे हैं ऐसेमें खरे संतोका अभिज्ञान(पहचान) कैसे करें और उनका महत्त्व घट रहा है ऐसा क्यों हो रहा है ? एक सरल सा तथ्य ध्यान रखें, जब राजा अधर्मी हो जाये और संत ढोंगी बन, लोगोंकी आस्थाको तोडने लगे तो ऐसा कालको ही […]

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गुरुपूर्णिमामें गुरुपूजन कैसे करें


गुरुपूर्णिमा महोत्सव यदि किसी साधकको अपने घरमें गुरुपूर्णिमा निमित गुरुपूजन करनेकी इच्छा हो तो इस लेखमें उस संदर्भमें मार्गदर्शन दिया गया है | १. गुरुपूजनकी तैयारी करनेके संदर्भमें कुछ सूचनाएं जिन साधकोंमें भाव है, ऐसे साधकको ही गुरुपूजनके लिए चुनें। स्त्री साधिकाएं भी गुरुपूजनके लिए बैठ सकती हैं । पूजापूर्व व उपरांत चौकीके आसपासकी जगह […]

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गुरु पूजनीय क्यों होते हैं ?


गुरु प्रेमकी प्रतिमूर्ति होते हैं, उन्हें तो निर्जीव वस्तुओंसे भी इतना प्रेम होता है कि उसमें भी वे अपने गुरुके स्वरुप या ब्रह्मका दर्शन कर उनसे प्रेम करते हैं ! सजीव, निर्जीव, देव, दानव सब गुरुके इसी प्रेममय स्वरुपपर न्योछावर होनेको तत्पर रहते हैं; इसलिए उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश समतुल्य, ईश्वरके सगुण स्वरूप एवं […]

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जीवनमें श्रीगुरुका प्रवेश कब होता है ?


जिस प्रकार जलके भीतर सांस लेनेकी तडप होती है जब वैसी ही तडपके साथ साधक अखंड सधानारत होता है, तभी उनके जीवनमें श्रीगुरुका प्रवेश होता है | यदि सांसारिक वस्तुके प्रति अधिक आकर्षण हो तो श्रीगुरु ऐसे जीवोंको भोग विलाससे भला क्यों मुक्त करेंगे ? एक दिन तो प्रत्येक जीवात्माको ईश्वरके शरणागत होना ही है; […]

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गुरु-लीला


सद्गुरु शिष्यकी कभी परीक्षा नहीं लेते क्योंकि उन्हें शिष्यकी क्षमताका पूर्ण भान होता है | शिष्यकी क्षमता और गुरुभक्तिका भान सब को हो अतः शिष्यको कठिनतम परिस्थितिमें डाल देते हैं और शिष्यको संपूर्ण गुरु-लीला का भान होता है अतः वह भी आनंदी होकर सब सहन करता है | इसलिए कहते हैं गुरु-शिष्यका संबंध अंतरंग होता […]

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सद्गुरु हमें जन्म और मृत्युके चक्रसे निकाल हमें ईश्वरप्राप्ति कराते हैं


माता –पिता हमें जन्म देकर हमारा लालन-पालन करते हैं और उनकी ऋण हम उनकी सात जन्म सेवा कर भी चुका नहीं सकते | सद्गुरु हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से निकाल हमें ईश्वरप्राप्ति कराते हैं, ऐसे सद्गुरुके ऋण से कोई शिष्य कैसे मुक्त हो सकता है | मात्र गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुतत्त्व के महत्त्व […]

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गुरु, शिष्यको अपनेसे कब दूर कर देते हैं ?


१.  जब शिष्य कुपात्र हो और अत्यधिक प्रयास करनेपर भी वह अपने दुर्गुणोंको दूर करनेका प्रयत्न नहीं करता ! २. शिष्यने गुरुभक्तिकी पराकाष्ठाकी अनुभूति ले ली हो तब गुरु शिष्यमें कोई भेद नहीं रह जाता और गुरु, शिष्यको इस ब्रह्मांडमें एकाकी विचरण करनेके लिए छोड देते हैं ! गुरु शिष्यका ९९ पग हाथ पकड कर […]

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गुरु शिष्यके पात्रता अनुरूप ही ज्ञान देते हैं


भगवान श्रीकृष्णने गीताका ज्ञान, अर्जुनको ही क्यों सुनाई और अन्य किसी पांडव और कौरवको क्यो नहीं ? क्योंकि गीताके संदेशको कृतिमें लानेका सामर्थ्य मात्र अर्जुनमें था ! ईश्वरीय ज्ञान पात्रता अनुसार प्राप्त होता है ! अर्जुनकी भक्ति श्रीकृष्णके प्रति यद्यपि सख्यभाव युक्त थी, परंतु वे श्रीकृष्णको गुरु रूपमें देखते थे और गुरु शिष्यके पात्रता अनुरूप […]

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साधकको निर्गुण तक ले जानेका कार्य मात्र सगुण देहधारी सद्गुरु कर सकते हैं !


मैं बचपनसे ही निर्गुणी उपासक रही हूं और संभवतः इसी कारण मेरे श्रीगुरुने सदैव निर्गुण माध्यमसे मेरा मार्गदर्शन भी किया, जब मैंने अपने श्रीगुरुके मार्गदर्शनमें वर्ष 1997 में साधना आरंभ की तो मात्र दो महीनेके पश्चात उन्होंने मुझे कहा ” अब आप मेरे पास न आया करें आप जहां है वहीं साधना करें आपकी वहीं साधना […]

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