संत कौन होते हैं ?


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ईश्वरके सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान तत्त्वका प्रकट स्वरुप अर्थात् संत । अतः संत सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान होते हैं । जिन्होंने प्रचंड साधना कर ईश्वरसे एकरूपता साध्य कर ली है उन्हें संत कहते हैं परंतु कलियुगमें ऐसे संतोंकी संख्या अत्यल्प है । संतोंको हम इन स्थूलकी आंखोंसे नहीं पहचान सकते हैं कारण क्या है तो संतकी अध्यात्मिक परिभाषा क्या है वह जान लेते हैं ,जिस जीवात्माका मन बुद्धि एवं अहम् पूर्णत: नष्ट हो गया हो और वे विश्वमन एवं विश्वबुद्धिसे एकरूप हो गए हों उन्हें संत कहते हैं अब आप ही बताएं किसी व्यक्ति का मनोलय हो गया है उसकी बुद्धि एवं अहमका लय हो गया है ऐसे व्यक्तिको कोई साधारण पञ्च ज्ञानेन्द्रियोंसे या अल्प बुद्धिसे कैसे समझ सकता है ? अतः संतोंको समझना या उसकी अनुभूति हेतु ठोस साधनाका आधार होना चाहिए, या सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियां जागृत होनी चाहिए या ईश्वरके प्रति भाव होना चाहिए अन्यथा आप संतके साथ रहकर भी आप संत को पहचान नहीं पाएंगे -तनुजा ठाकुर



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