घरका वैद्य – स्वर चिकित्सा


एक शास्त्र वचन अनुसार, ‘कायानगर मध्ये तु मारुत क्षिति पालक’ अर्थात देहरूपी नगरमें वायु राजाके समान है । शरीरद्वारा वायु ग्रहण करनेका नाम ‘निःश्वास’ और वायु त्यागनेका नाम ‘प्रश्वास’ है । जीवके जन्मसे मृत्युतक ये दोनों क्रियाएं निरन्तर चलती रहती हैं । कभी यह बाईं ओरसे चलती है, कभी दाईं ओरसे तो कभी दोनों ही नासिकाओंसे । स्वरके चलनेकी क्रियाको उदय होना मानकर ‘स्वरोदय’ कहा गया है तथा विज्ञान, जिसमें कुछ विधियां बताई गई हों और विषयके रहस्यको समझनेका प्रयास हो, उसे विज्ञान कहा जाता है ।
स्वर चिकित्साके विषय में जानकारी पानेके लिए नीचे दिए गए लेखोंको पढे :


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