सत्संगका पूर्ण लाभ कैसे उठायें ?


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सत्संगमें बौद्धिकरूपसे सिखाये जाने वाले विषय और शब्दातीत स्तरपर प्रक्षेपित चैतन्यका पूर्ण लाभ लेनेके लिए हम क्या कर सकते हैं ?

१. सत्संगमें जानेसे पूर्व ही नमक पानीका उपाय करें जिससे कि सत्संगके चैतन्यको आप ग्रहण कर सकें मैंने देखा है कि कुछ लोगोंको अत्याधिक आध्यात्मिक कष्ट होनेके कारण वे सत्संगमें आते ही सोने लगते हैं और इसी कारणसे वे सत्संगमें आना कई बार टालते हैं | नामक पानीका उपायकर सत्संगमें आनेसे मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो जाता है और अध्यात्मका बौद्धिक भाग ग्रहण होता है साथ ही आवरण कम रहनेके कारण सत्संगके चैतन्य भी अधिक मात्रामें ग्रहण होता है | नमक पानीका उपाय कैसे कर सकते हैं यह भी समझ लेते हैं | अपनी सुविधानुसार या मौसम अनुसार आधी बाल्टी गरम या ठंडा पानीमें एक चम्मच मोटा नमक डालें और उसमे एक चम्मच गौ मूत्र डालें और अपने दोनों पैर उसमे डालकर पंद्रह मिनट कुर्सीपर बैठें और साथ मैं अपने गुरुमंत्रका या श्री गुरुदेव दत्तका जप करें और पंद्रह मिनटके पश्चातमें पानीसे पैर निकलकर पानी फ़ेंक दें और पैर स्वच्छ जलसे धो लें |

२. सत्संगमें बैठनेसे दस मिनट पूर्व ही प्रार्थना करें कि सत्संगके चैतन्यको ग्रहण कर सकूं |

३. सत्संग आरम्भ होनेसे पूर्व गणेशजी जो बुद्धिके देवता है और मां सरस्वती जो विद्याकी देवी हैं उन्हें प्रार्थना करें कि हमारे मन एवं बुद्धिपर जो भी आवरण हो वह नष्ट हो और सत्संगको हम मन, बुद्धि एवं चैतन्यके स्तरपर ग्रहण कर उसे अपने जीवनमें उतार सकें |

४. सत्संगके दौरान भी नामजप एवं प्रार्थनामें निरंतरता बनायें रखें |

५. वर्तमान समयमें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट अत्यधिक बढ़ गया है ऐसेमें यदि सत्संगमें बैठनेके बाद कुछ शारीरिक कष्ट हो रहा हो तो एकाग्रता पूर्वक नामजप और प्रार्थना करें और वहांसे उठें नहीं बैठें ही रहें, इससे थोड़े समयके पश्चात आपके कष्ट कम हो जायेंगे | फरवरी २०११ में मैं दिल्लीमें एक घरमें सत्संग ले रही थी तो सत्संगमें बैठे एक साधकको कष्ट होने लगा उन्हें थरथराहट भी होने लगी और उन्हें लगा कि सत्संगसे उठकर चला जाऊं परन्तु वे नामजप और प्रार्थनाके बल पर बैठे रहे |

अगले दिन उन्होंने पाया कि उनकी पंद्रह वर्ष पुराने चर्मरोगसे प्रभावित पैरमें ८०% सुधार थी और अगले तीन दिनमें उनका चर्मरोग बिलकुल ही समाप्त हो गया जिसमे १५ वर्षों से खुजली होती थी और खून निकला करता था | उस साधकको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट था सत्संगके चैतन्यसे उन्हें कष्ट देने वाली शक्तिको गति मिल गयी और उनका कष्ट चमत्कारिक रूपसे ठीक हो गया | यह सत्संगका महात्म्य है | उसी प्रकार मार्च २०११ जब मैं बक्सरमें सत्संग ले रही थी तो सत्संग समाप्त होनेके पश्चात तीन साधकोंने बताया कि सत्संगसे पूर्व उन्हें अत्याधिक शारीरिक पीड़ा थी जो सत्संग समाप्त होनेपर पूर्णतः ठीक हो गया |

यदि हम अध्यात्ममें प्रगति करने की क्षमता रखते हैं तो कई बार अनिष्ट शक्तियां सत्संगमें जाने नहीं देती और सत्संग जानेसे रोकती हैं और इस कारण सत्संग जानेसे पूर्व कोई न कोई अड़चन निर्माण कर देती हैं | मैं अपनी ही अनुभूति इस सन्दर्भमें बताती हूँ | मैं १९९९ में सनातन संस्थाके फलकको देखकर सत्संगमें जाना चाहती थी परन्तु दो महीने प्रत्येक गुरूवार कोई ना कोई अड़चनके कारण मैं सत्संगमें नहीं जा पाती थी | एक सप्ताह मेरे एक परिचित जो उस सत्संगमें जाने लगे थे, उन्होंने मुझे परम पूज्य गुरुदेवके लिखे हुए ग्रन्थ दिए, उस ग्रन्थको पढनेके पश्चात मैं उस ग्रन्थकी जानकारी से और उनकी लेखन शैलीसे इतनी प्रभावित हुई कि मैंने अगले सत्संगमें जानेका दृढ संकल्प ले लिया | वास्तविकता यह है कि संत लिखित ग्रन्थ पढनेसे मुझे चैतन्य मिला और सुक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंके कारण निर्माण हुए अड़चन नष्ट हो गयीं और बुद्धिसे निर्धारित संकल्पने मुझे सत्संगमें जानेकी अड़चन को दूर करनेमें सहायता की |-तनुजा ठाकुर



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