अनेक धनवानोंको लगता है कि अपने मृत पूर्वजके चित्र समाचार पत्रमें छपवा देनेसे वे पितृ ऋणसे ऊऋण हो जाएंगे ! मृत्योपरान्तकी यात्रामें जीवात्माको गति देना इतना सरल होता तो हमारे ऋषि मुनि श्राद्ध एवं तत्सम धार्मिक कृति जैसी कठिन आध्यात्मिक प्रक्रिया क्यों बताते ?
समाचार पत्रमें श्रद्धाञ्जलि ज्ञापन करनेसे आपके मनको समाधान मिलता है, पितरोंको लाभ नहीं मिलता है ! पितरोंकी मृत्योपरान्तकी यात्रामें उनके वंशजोंद्वारा सूक्ष्म साधना करनेसे उन्हें लाभ मिलता है; परन्तु धर्मशिक्षणके अभावमें और पाश्चात्य संस्कृतिका अन्धा अनुकरणसे ग्रस्त हिन्दुओंपर ऐसा रंग चढा है, आजके तथाकथित बुद्धिवादी हिन्दुओंको जो सरल लगे और जिससे समाजमें प्रतिष्ठा मिले वह उसीको करनेमें अपना बडप्पन समझते हैं ! – तनुजा ठाकुर
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