भक्तियोग कलियुगकी योग्य साधना


तमोगुणी वृत्तिके लिय भक्तियोग सरल मार्ग है ।

अधिकांश कलियुगी जीव मूलतः तमोगुणी होते हैं, ऐसेमें ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, क्रियायोग इत्यादि की साधना करना उनके लिए कठिन होता है । भक्तियोग कलियुगी जीवके लिए सरल योगमार्ग है; क्योंकि साधक तमोगुणी होते हुए भी इस मार्गका अनुसरण कर साधना कर  सकता है । इसके विपरीत ज्ञानयोगकी साधना करनेके लिए तीक्ष्ण बुद्धि और सूक्ष्मज्ञानका होना आवश्यक है । कर्मयोगके लिए निष्काम, अकर्तापनयुक्त कर्म करना भी कठिन होता है । तमोगुणका प्राबल्य होनेके कारण, धैर्य रखकर अनेक वर्ष चित्त वृत्तियोंका निरोध कर ध्यान करना भी कठिन है; अतः कलियुगमें सहजयोग अर्थात भक्तियोग और इसके अन्तर्गत नामसंकीर्तनयोग सहज साधना है ।

आ.  व्यावहारिक जीवनमें कष्ट अधिक होनेके कारण सकाम भक्तिके प्रति सहज आकृष्ट होना
कलियुगी जीवके जीवनमें प्रारब्धकी तीव्रता अधिक होनेके कारण कष्टका प्रमाण अधिक होता है । अन्य युगोंकी अपेक्षा धर्मके तीन अंगोका पतन हो जानेके कारण सामान्य व्यक्ति धर्म एवं साधनाको इतना महत्त्व नहीं देता; अतः अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट भी अधिक होता है । ऐसी स्थितिमें शरणागतिका भाव रख आध्यात्मिक प्रगति करना सरल मार्ग है । भक्तियोगमें साधक पहले सकाम अर्थात अपेक्षाके साथ साधना करता है और अपेक्षा पूर्ण होनेपर धीरे-धीरे भक्ति बढती है और साधक सकामसे निष्काम भक्तिकी ओर मार्गक्रमण होने लगता है । निष्काम भक्तिसे आध्यात्मिक प्रगति होती है और साधक, साधना पथपर अग्रसर होने लगता है ।

इ.  कलियुगमें साधनाके समयका अभाव होना
कलियुगमें धर्मका ह्रास हो जानेके कारण साधकत्वमें कमी आ गयी है; फलस्वरूप साधनाके लिए समय निकालना कठिन है, ऐसेमें उठते-बैठते ईश्वरका नामसंकीर्तन करना अधिक सरल साधना है ।

ई.  कलियुगमें भक्तिमार्गी गुरुका प्रमाण अधिक होना

कलियुगमें अन्य योगमार्गके योग्य गुरु मिलना भी कठिन है और भक्तियोगके गुरु मिलना सरल है; अतः कलियुगमें भक्तियोगका योगमार्ग अधिक योग्य है ।

उ.   भक्तियोगद्वारा सभी योगमार्ग साध्य करना सम्भव
भक्तियोग अन्तर्गत नामसंकीर्तनयोगका मार्ग अनुसरण करनेसे जब नामजप अखण्ड हो जाता है, तब जागृतावस्थामें ही ध्यान साध्य हो जाता है ।
जब नामजप अखण्ड हो जाए, तब कर्म भी अकर्म होने लगते हैं अर्थात कर्मफलका सिद्धान्त लागू नहीं होता; अतः कर्मयोग भी साध्य हो जाता है । ॐ अर्थात ईश्वरका निर्गुण स्वरूप या नाम है, जिससे पूरी सृष्टिकी और सम्पूर्ण वेदकी निर्मिति हुई है; अतः नामके साथ एकरूप हुए साधकको सर्वज्ञताकी भी अनुभूति स्वतः ही हो जाती है, जो ज्ञानयोग से साध्य होती है । आखिर ज्ञानमार्गी उद्धवको भक्तिकी पराकाष्ठाकी अनुभूति लेनेवाली गोपियोंने ज्ञान दिया था ! -तनुजा ठाकुर



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