शंका समाधान

पितरोंके छायाचित्र घरमें क्यों नहीं रखना चाहिए ? (भाग – ६)

राजस्थानके कोटा जनपदके श्री वैभव अग्रवालने पितरोंके छायाचित्रसे सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा है, उनका प्रश्न इस प्रकार है - आपके लेखोंको पढनेके पश्चात यह तो समझमें आ गया है कि पूर्वजोंके छायाचित्र घरमें नहीं रखने चाहिए; परन्तु मेरे पास मेरे स्वर्गवासी दादा-दादीके छायाचित्र बैठक कक्षमें हैं । ऐसेमें यदि उन्हें बैठक कक्षसे हटा दें तो उन्हें कहां रखें और उन छायाचित्रोंका क्या करें ?


आपके बैठक कक्षमें रखे पितरोंके छायाचित्रोंका सर्वोत्तम उपाय यह होगा कि उन्हें ‘स्कैन’ कर अपने संगणकमें (कम्प्यूटरमें) संरक्षित कर रख लें एवं उनके छायाचित्रको स्वच्छ एवं बहते जलमें विसर्जित…..

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सभीके कल्याणके लिए सर्वप्रथम अपना आत्मोद्धार करें !

प्रश्न : जैसा कि मैं देख पा रहा हूं, मेरे पिता साधना नहीं करेंगे; क्योंकि उन्हें साधना करने हेतु अनेक बार कहनेपर भी वे साधना करनेका अंशमात्र भी प्रयास नहीं करते हैं, उनमें इस आयुमें भी संसारके प्रति अत्यधिक मोह है, इससे मेरे मनमें प्रतिक्रिया आती है । उनके साधना नहीं करनेके कारण हमारे व्यावहारिक जीवनमें भी अनेक विघ्न आते हैं । मेरा प्रश्न है कि क्या केवल मैं और माताजी साधना कर, पूर्वजोंको सद्गति दिलवा सकते हैं एवं क्या इससे मेरे पिता और छोटे भाईको कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियां नष्ट होंगी ? और यदि किसी कारणसे मां भी साधना गम्भीरतापूर्वक न कर पाए तो क्या और मात्र मैं ही करूं तो क्या मैं मेरी मृत्युके पश्चात मैं केवल अपना मार्ग प्रशस्त कर पाऊंगा या मृत माता-पिताके सूक्ष्म लिंगदेहको भी गति दे पाऊंगा ?; क्योंकि मैं नहीं चाहता कि उनमेंसे कोई भी मृत्यु पश्चात अतृप्त होकर भटके । - चैतन्य देव, देहली


योग्य साधना करनेपर एक पुत्र सम्पूर्ण कुलके पितरोंको सद्गति दिलानेका सामर्थ्य रखता है और इसका सर्वोत्तम उदाहरण है, भागीरथ मुनि, जिन्होंने कठोर तपश्चर्या कर अपने कुलके साथ सहस्र पूर्वजोंको भी गति दिलवाई थी…

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दत्तात्रेय देवता कौन हैं ? (भाग- १)

‘जागृत भव’ गुटके एक पाठक श्री पाण्डेयजीने, दाह- संस्कार हेतु मृत शरीरको ले जाते समय ‘राम नाम सत्य है’ कहनेकी अपेक्षा ‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप वर्तमान कालमें करना चाहिए, मेरे इस लघु लेखपर इसप्रकारसे शंका व्यक्त की है - राम नामके (जो सर्वव्यापी हैं) स्थानपर ‘श्री गुरुदेव दत्त’के (महाराष्ट्र आदि प्रचलित) नामका प्रयोग मृत देह ले जाते समय उचित प्रतीत नहीं होता ।


सर्वप्रथम देवी-देवताओंको प्रान्तोंमें न बांधे, जबसे सृष्टिकी उत्पत्ति हुई है और जब तक रहेगी, वे सर्वव्यापी तत्त्वके रूपमें विद्यमान रहनेवाले हैं ! अत्यन्त विनम्रतासे यह बताना चाहूंगी कि दत्तात्रेय देवता…..

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हिन्दुओंमें रात्रि विवाह करना क्यों आरम्भ हुआ ?


रात्रिका काल तामसिक होनेके कारण मध्य रात्रि विवाह नहीं करना चाहिए, इसपर एक व्यक्तिने कहा कि रात्रिमें विवाहके भी कुछ कारण होंगे ! जी हां, उत्तर भारतमें मुसलमान आक्रान्ता, जो प्रवृत्तिसे ही वासनान्ध होते थे, वे हिन्दुओंके दिनमें होनेवाले विवाहके समय कुंवारी कन्या, जिसका विवाह होनेवाला होता था, उसे उठाकर ले जाते थे और उनका […]

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यदि सुपुत्र हो तो भी धन संचय क्यों नहीं करना चाहिए ?

यदि सुपुत्र हो तो धन संचय क्यों नहीं करना चाहिए ?


कुपुत्र, पिताके अर्जित धन-सम्पदाका नाश अपनी कुप्रवृत्तियोंमें व्ययकर व्यर्थ कर देता है । यदि सुपुत्र हो तो वह अपने क्रियमाण एवं सुसंस्कारसे धन स्वयं अर्जित कर लेता है ! सुपुत्रका अर्थ होता है, साधक प्रवृत्तिका धर्मनिष्ठ जीव…..

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दत्तात्रेय देवताके जपसे कष्ट क्यों होता है ?

मैं आपके व्हाट्सएप गुटमें ‘साधना गुट १’की साधिका हूं । साधना आरम्भ करनेपर मुझे कुछ कष्ट होने आरम्भ हुए हैं, ये क्यों हो रहे हैं ?, यह जानना चाहती हूं ! जैसे, ‘ॐ श्री गुरुदेव दत्त’ नामजपके समय मैं बहुत अशान्त हो जाती हूं, एक प्रकारकी व्याकुलता रहती है । आज जब मध्यान्ह दत्तात्रेयका जप कर रही थी तो तीन बार हृदय गति बहुत तीव्र चलने लगी और पुनः मन व्याकुल हो गया । मैं नेत्र खोलकर जप करने लगी तब भी ऐसा हुआ तो मैं मात्र आधे घण्टे जप कर पाई । नामजपके पश्चात मुझे बहुत नींद आती है और मैं आधे घण्टेसे दो घण्टे तक सो जाती हूं । ऐसा क्यों होता है ? आपके द्वारा बताए गए नामजपको मैं ऐसी स्थिति में आपके श्रव्य जपको सुनकर रसोईघरमें कार्य करते समय एवं १५ मिनिट सैरके मध्य पूर्ण करती हूं, क्या यह जप एक घण्टेके जपमें मान्य होगा ? - एक साधिका  


आज १०० प्रतिशत लोगोंको पितृ दोषके कारण कष्ट है; इसलिए दतात्रेयका जप सभीको करने हेतु हमारे श्रीगुरुने कहा है । हमारे पूर्वज अत्यन्त कुपित होते हैं; क्योंकि हमने उनके प्रति कुछ पीढियोंसे उपेक्षाका भाव रखा है, मृत्योत्तर क्रिया-कर्म…..

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निद्राका नामजपपर प्रभाव

प्रातः उठाकर नामजप करता हूं, इसके पश्चात सोनेसे क्या नामजपका लाभ मिलता है ? -  अल्पेश, सूरत


उत्तर : नामजप चाहे जैसे करें, उसका लाभ मिलता ही है, एक प्रसिद्ध कहावत है “राम नाम टेढो भला” । अर्थात भगवानका नाम कैसे भी लिया जाए, कहीं भी लिया जाए उसका लाभ मिलता ही है, किन्तु यदि आप ऐसा सोचते हैं, नामजप ब्राह्म मुहूर्तमें करना चाहिए और आप उसकालमें उठकर नित्य कर्मसे निवृत्त होकर […]

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खण्डित विग्रहकी आराधना न करें !

यदि पारद शिवलिंगकी जलेरी खण्डित हो गई हो तो उसकी पूजा की जा सकती है या उसका विसर्जन करना चाहिए ? - पवन पुरोहित, बीकानेर, राजस्थान


सामान्यत: जलेरी शिवलिंगके साथ जुडी होती है, यदि उसकी प्राणप्रतिष्ठा नहीं हुई हो और उसे यूं ही घर लाकर रखा हो तो जलेरीसे पृथक कर मात्र उसे विसर्जित करें, शास्त्र कहता है कि किसी भी खण्डित विग्रह या मूर्तिकी पूजा एक दिवस भी नहीं करनी चाहिए, किन्तु यदि वह जुडी हो तो उसे शिवलिंगके साथ […]

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ध्यानावस्था एवं भावावस्थाका भेद


१. ध्यानमें नामजप अधिक नहीं कर सकता हूं, क्या यह ठीक है ? – अल्पेश, सूरत, गुजरात ध्यानमें मन निर्विचार हो जाता है, इसलिए यदि ध्यानमें मन निर्विचार हो जाए तो यह सर्वोत्तम अवस्था होती है, वस्तुत एकाग्रतापूर्वक नामजप करनेसे मन स्वतः ही ध्यानस्थ होकर निर्विचार होने लगता है और यही तो नामजपका उद्देश्य होता […]

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साधना सम्बन्धी विवाहके विधान

मैंने आपका वैदिक विवाहसे सम्बन्धित ‘धर्मधारा सत्संग’ सुना है । उसे सुननेके पश्चात मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या जिनका प्रेम विवाह हुआ है अर्थात जिनका पूर्ण वैदिक रीतिसे विवाह नहीं हुआ हो, वे साधना कर सकते हैं ? - हर्ष महाजन, खरगोन, मध्य प्रदेश


इस प्रश्नका उत्तर जाननेसे पूर्व हमारे धर्मशास्त्रोंमें आठ प्रकारके जो विवाह बताए गए हैं, उसे जान लें यथा – १. ब्रह्म विवाह : दोनों पक्षोंकी सहमतिसे समान वर्ण, कुल इत्यादिको देखकर, सुयोग्य वरसे कन्याका विवाह निश्चित कर देना ‘ब्रह्म विवाह’ कहलाता है । इस विवाहमें वैदिक रीतिका पालन कर पाणिग्रहण संस्कार होता है एवं विवाहके […]

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