संत वाणी

सन्त वाणी


जैसे आगमें डालनेसे सोना काला नहीं पडता, वैसे ही जिस शिक्षकके सिखानेमें किसी प्रकारकी चूक न दिखलाई पडे उसे ही सच्ची शिक्षा कहते हैं।–कालिदास

आगे पढें

सन्त वाणी


अत्यंत लोभीका धन तथा अधिक आसक्ति रखने वालेका काम – ये दोनों ही धर्मको हानि पहुंचाते हैं । – वेदव्यास

आगे पढें

सन्त वाणी


जो व्यक्ति अपना पक्ष छोडकर दूसरे पक्षसे मिल जाता है, वह अपने पक्षके नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्षद्वारा नष्ट कर दिया जाता है । – महर्षि वाल्मीकि

आगे पढें

सन्त वाणी


जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे, उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है । – वेदव्यास

आगे पढें

सन्त वाणी


प्रिय शब्द स्वयं कहकर दूसरोंके शब्दोंके प्रयोजनको हृदयंगम करना निर्मल स्वभाव वाले महान व्यक्तियोंका सिद्धांत है । – तिरुवल्लुवर

आगे पढें

सन्त वाणी


हितकर, किंतु अप्रिय वचनको कहने और सुननेवाले, दोनों दुर्लभ हैं। – वाल्मीकि 

आगे पढें

सन्त वाणी


धैर्य, धर्म, मित्र और नारीकी परीक्षा आपात स्थितिमें होती है ।- सन्त तुलसीदास

आगे पढें

सन्त वाणी


अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीरमें ही स्थित हैं । मनुष्य मोहसे मृत्युको और सत्यसे अमृतको प्राप्त होता है । – वेदव्यास

आगे पढें

सन्त वाणी


सहयोग प्रेमकी सामान्य अभिव्यक्तिके अतिरिक्त कुछ नहीं है । – स्वामी रामतीर्थ

आगे पढें

सन्त वाणी


धनका प्रयोग केवल दूसरोंकी भलाईमें होना चाहिए, अन्यथा यह अहंकार एवं विलासिताका स्रोत बन जाता है |- स्वामी विवेकानन्द

आगे पढें

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution