अध्यात्म एवं साधना

एक बूंंद तेल और एक बूंंद जल


एक बूंंद तेल और एक बूंंद जल मिल नहीं सकते क्योंकि दोनोंके घटक भिन्न-भिन्न हैं, दोनोंको एक होने हेतु किसी एकने दुसरेके गुण आत्मसात कर अपने अस्तित्त्वको मिटाना चाहिए, उसी प्रकार यदि हमें परमेश्वरसे एकरूप होना है तो उनके दिव्य गुणोंको आत्मसात अपने स्वको समाप्त करना होगा, तभी पूर्णत्वकी प्राप्ति संभव है – तनुजा ठाकुर

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एक साधकने पूछा है कि मैं साधकोंसे चूक होने पर डांटती क्यों हूंं ?


मैं धर्म सिखाती हूं और उत्कृष्ट कृति करनेपर परितोषिक प्रदान करना और अयोग्य करनेपर दंड देना यह धर्मसिद्धांत है ! मैं मात्र इस सिद्धान्तका पालन गुरु आज्ञा मानकर करती हूंं ! हमारे दोष शत्रु होते हैं और दोषोंके कारण चूक होती हैं अतः दोषोंके प्रति तटस्थ होकर व्यवहार करने से हमारी आध्यात्मिक प्रगति अतिशीघ्र होती […]

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‘सगुण निर्गुण नहीं भेदाभेद’


मुझसे किसीने पूछा “क्या आप कृष्ण भक्त हैं क्योंकि आपके अनेक लेख कृष्ण भक्ति पर आधारित होते है ” ? पूर्णत्वकी प्राप्ति मेरा लक्ष्य है तो पूर्ण पुरुषका प्रिय लगना तो सामान्य सी बात है, वैसे मैं बचपन से ही निर्गुणी भक्त रही हूंं परंतु ईश्वरके भिन्न साकार रूपोंसे भी प्रेम है मुझे , आखिर […]

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गुरुका मिलना सरल है किन्तु सतशिष्यका मिलना अत्यंत दुर्लभ है !


हमारे श्रीगुरुने एक बार एक सुन्दर तथ्य कहा था – बुद्धिवादी एवं नेतृत्त्व कुशल साधक जीव यदि साधना करे तो वह शीघ्र ईश्वर प्राप्ति कर सकता है, परन्तु अधिकांशतः ऐसे बुद्धिवादी जिसमें नेतृत्त्वकी क्षमता एवं साधना करनेकी प्रवृत्ति हो, उसमें अहंकार अधिक होनेके कारण  उसमें अपने मनानुसार करनेकी प्रवृत्ति होती है, गुरुको समष्टि कार्य हेतु […]

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बुद्धिका उपयोग गुरुकी आज्ञाका पालन परिपूर्णतासे करनेमें लगाएं


बुद्धिका उपयोग गुरुकी आज्ञाका विश्लेषण करनेमें लगानेकी अपेक्षा गुरुकी आज्ञाका पालन परिपूर्णतासे करनेमें लगाएं । ऐसा करनेसे मनोलय शीघ्र होता है और आज्ञा चक्रका भेदन हो, हमारी आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गति से होती है -तनुजा ठाकुर

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किसका नामजप करना चाहिए कुलदेव या कुलदेवीका?


केवल कुलदेव हों, तो उन्हींका नामजप करना चाहिए व केवल कुलदेवी हों, तो उनके नामका जप करना चाहिए । किसीके कुलमें कुलदेव एवं कुलदेवी दोनों ही हों, तो वह कुलदेवीका जप करे । इसका कारण इस प्रकार है – अपनी बाल अवस्थामें, माता-पिता दोनोंके होते हुए हम माताके साथ ही अधिक हठ करते हैं, क्योंकि […]

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वैदिक धर्मकी सम्पूर्णता ।


वैदिक  सनातन धर्ममें सूक्ष्म लोकोंकी व्याप्ति सप्त लोक (भू, भुव, स्वर्ग, महा, जन तप और सत्य लोक ) एवं सप्त पाताल तक की है और अन्य धर्ममें (सारे कलियुगी हैं अतः पंथ कहना उत्तम होगा ) लोकोंकी व्याप्ति स्वर्ग तक ही है। आखिर जितने संस्थापककी आध्यात्मिक क्षमता होगी उतने ही तो उनकी सूक्ष्मकी जानकरी और […]

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गुरुकृपायोग


कलियुगमें शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु गुरुकृपायोगका विहंगम मार्ग सर्वोत्तम है। इस मार्गके अनुसार शीघ्र प्रगति क्यों होती है ? क्योंकि इस योगमार्गमें अनेक योग मार्गोंकी साधना समाहित होती है। जैसे गुरुकृपायोगसे साधना करनेवाले खरे अर्थमें कर्मयोगी होते हैं। वे गुरुको कर्त्तापन अर्पण कर, निष्काम भावसे अखंड कर्ममें रत रहते हैं। यहांं तक कि संत पदपर […]

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अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते !!!


एक बार एक सन्यासी जी मुझसे मिले और जब उन्होंंने देखा की मैं स्वयंके चूक और अन्य साधकोंके चूक सबके समक्ष बताती हूंं तो वे थोडे डर गए और मुझसे बोले “देवी जी मेरे चूक सार्वजनिक स्तर पर न बताईगा ” मैंने कहा, ” निश्चिंत रहें मैं आपका नाम लेकर आपके चूक कभी नहीं बताऊंंगी” […]

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संतोंको हम इन स्थूल आंखोंसे क्यों नहीं पहचान सकते हैं ?


संतकी आध्यात्मिक परिभाषा क्या है, यह जान लेते हैं , जिस जीवात्माका मन बुद्धि एवं अहम् नष्ट हो गया हो और वे विश्वमन एवं विश्वबुद्धिसे एकरूप हो गए हों उन्हें संत कहते हैं अब आप ही बताएं किसी व्यक्तिका मनोलय हो गया है उसकी बुद्धि एवं अहमका लय हो गया है ऐसे व्यक्तिको कोई साधारण […]

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