गुरु, शिष्य एवं साधक

गुरु और शिष्यमे कभी मतभेद हो ही नहीं सकता


            महाकुंभ में एक प्रसिद्ध सन्यासीसे मिली जिन्हें सब संत कहते थे परंतु वे एक उन्नत थे ! उन्नत वे होते हैं जो संत अर्थात आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते परंतु उनकी साधना अच्छी होती है |मैंने उनके बारेमें पूछा तो उनके एक शिष्यने कहा , “उनके गुरु —– थे परंतु उनके […]

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गुरुके प्रति अटूट भक्ति ही शिष्यकी शक्ति होती है


गुरुके प्रति अटूट भक्ति ही शिष्यकी शक्ति होती है और यही शक्ति उसे द्वैतसे  अद्वैतकी ओर ले जाती है ! गुरु सेवामें लीन शिष्य ‘अहम् ब्रह्म अस्मि’ के भावमें कब रत हो जाता है उसे भी इसका भान नहीं होता ! इसे ही गुरु कृपा और सगुणसे निर्गुणकी ओर का आध्यात्मिक प्रवास कहते    हैं ! -तनुजा […]

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एक सतशिष्यके जीवनमें सद्गुरुके प्रवेश


एक सतशिष्यके जीवनमें सद्गुरुके प्रवेशके पश्चात उसके सर्व कृति सद्गुरुकी इच्छासे ही ही होता है | इस विचारका अनुसरण कर सर्व कर्म करनेवाले सतशिष्यके ऊपर किसी भी प्रकारका कर्मफल लागू नहीं होता और न ही उससे कोई अयोग्य कृति होती है ! ऐसा शिष्य खरे अर्थमें कर्मयोगी होता है |-तनुजा ठाकुर  

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श्रीगुरुको स्मरण करना


अपने श्रीगुरुको स्मरण करना, वेद पठन करने समान ही है | – तनुजा ठाकुर  

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सतशिष्यकी परिणति गुरुमें हो जाता है


कोई भी खरा शिष्य गुरु बननेकी इच्छासे अपने सद्गुरुके पास नहीं जाता; परंतु प्रत्येक सतशिष्यकी परिणति गुरुमें हो जाता है यह एक चिरंतन सत्य है ! -तनुजा ठाकुर

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शिष्यकी आध्यात्मिक क्षमता जैसे-जैसे बढती है गुरु उसका कार्यक्षेत्र बढा देते हैं


शिष्यकी आध्यात्मिक क्षमता जैसे-जैसे बढती है, गुरु उसका समष्टि कार्यक्षेत्र बढा देते हैं । सर्वप्रथम शिष्यका कार्यक्षेत्र एक ग्राम होता है, तत्पश्चात उसकी क्षमता बढनेपर श्रीगुरु उसके कार्यक्षेत्रमें उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाते हैं, जैसे एक जनपद, एक राज्य, अनेक राज्य, एक राष्ट्र, अनेक राष्ट्र एवं पूर्णत्व प्राप्त शिष्यका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड होता है ! -तनुजा […]

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सद्गुरु शिष्यको अत्यंत कठोर परिस्थितिमें क्यों डाल देते है ??


जब कोई शिष्य सद्गुरुके मार्गदर्शनमें साधना करने लगता है और उसकी गुरुके प्रति भक्ति बढने लगती है तब गुरु, शिष्यके अंदर धैर्य, भक्ति, प्रेम, तडप, नम्रता और शरणागति जैसे दिव्य गुणोंको निखारनेके लिए उसे अत्यंत कठोर परिस्थितिमें डाल देते है और यदि शिष्य इन दिव्य गुणोंके बलपर यशस्वी हो जाता है तो गुरु अपनी सम्पूर्ण […]

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शिष्यकी पात्रताके अनुसार गुरुतत्त्व कार्य करता है !


अध्यात्मशास्त्रका ज्ञान न होनेके कारण अनेक जिज्ञासु एवं साधक, ढोंगी गुरुके चक्रव्यूहमें फंस जाते हैं; परंतु मैंने देखा है कि जिस साधकमें साधना करनेकी, ईश्वरप्राप्तिकी अत्यधिक तडप हो और साधकत्त्वका प्रमाण अधिक हो तो वह यदि अयोग्य गुरुके चकव्यूहमें फंस भी जाये तो उसकी श्रद्धा और भावके कारण गुरुतत्त्व उसका योग्य मार्गदर्शन करते हैं और उसके […]

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महान संत रामानुजाचार्य !


एक गुरु ने एक शिष्य को एक महामंत्र कान में बता दी और कहा यह अत्यंत शक्तिशाली मंत्र इसे जपने से तुम्हारा परम कल्याण निश्चित है परंतु इसे किसी को बताना मत अन्यथा तुम महापाप के भागी होगे | शिष्य अगले दिन मंदिर के शिखर पर चढ़ ज़ोर ज़ोर से सभी को महामंत्र जपने के […]

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सद्गुरुकी पूर्ण आध्यात्मिक शक्ति योग्य पात्रवाले सतशिष्यको स्वतः ही प्राप्त हो जाती है


जैसे पतिव्रता स्त्रीको सत्पुरुष धर्माचरणी पतिद्वारा अर्जित ऐहिक और पारलौकिक थाती स्वतः ही प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार सद्गुरुकी पूर्ण आध्यात्मिक शक्ति योग्य पात्रवाले सतशिष्यको स्वतः ही प्राप्त हो जाता हैऔर तब गुरु शिष्यमें कोई भेद नहीं रह जाता और शिष्य गुरुमय हो जाता है !-तनुजा ठाकुर

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