गुरु पूजनीय इसलिए होते हैं; क्योंकि वे धर्मका ज्ञान देकर हमें पाप करनेसे बचाते हैं और यदि जाने-अनजानेमें इस जन्म या पिछले जन्ममें पाप हो गया हो तो उसे भोगने हेतु प्रवृत्त ही नहीं करते हैं; अपितु उसे भोगनेकी शक्ति भी देते हैं; क्योंकि पापोंको भोगकर ही समाप्त किया जा सकता है । गुरु इसलिए […]
सात्त्विक रहना हमें कोई भी विद्वान या धर्मनिष्ठ व्यक्ति सिखा सकते हैं; किन्तु त्रिगुणातीत स्तरपर मात्र गुरु ले जा सकते हैं; अतः गुरु वन्दनीय होते हैं !
भगवान श्रीकृष्णके १०८ नामोंमेंसे एक नाम जगद्गुरु अर्थात ब्रह्मांडके गुरु है। हमारे श्रीगुरु जगद्गुरु कैसे हैं इसे शब्दोंमें बताना अत्यन्त कठिन है किन्तु कुछ उनके कुछ गुण जो उन्हें जगद्गुरु पदपर स्वतः ही आसीन करता है वे इसप्रकार हैं….
मेरा कार्य किसी भी व्यक्तिको मायामें उलझाना नहीं है; अपितु मायासे निकालकर ईश्वरकी और उन्मुख करना है ! दूसरा यदि आपको अनिष्ट शक्तियोंके कारण कष्ट हो रहा है….
अस्थिर बुद्धि एवं अशान्त चित्तवाला व्यक्ति कभी भी साधना नहीं कर सकता है । साधनाकालमें अनेक बार ईश्वरेच्छा अनुरूप हमें विपरीत परिस्थितयोंमें रहना पड सकता है । अस्थिर प्रवृत्तिवाला व्यक्ति ऐसी स्थितिमें साधना नहीं कर सकता……
विपरीत परिस्थितियोंमें मनकी स्थिरता बनाए रखते हुए साधना सम्बन्धित अपने कर्तव्योंका पालन करनेवाले जीवको साधक कहते हैं, आजका संस्मरण इसी तथ्यसे सम्बन्धित है । ख्रिस्ताब्द १९९९ में झारखण्डके (उस समय बिहार था) एक जनपदमें धर्मप्रसारके मध्य एक धनाड्य परिवारकी स्त्री, सनातन संस्थाके मार्गदर्शनमें साधना करने लगीं । उनके पति राजसिक प्रवृत्तिके थे और अपने करोडपति […]
ख्रिस्ताब्द २००० में मैं एक दिवस अयोध्यामें धर्म प्रसारकी सेवा अन्तर्गत ग्रन्थ प्रदर्शनी केन्द्रपर (स्टालपर) ग्रन्थके माध्यमसे जिज्ञासुओंको साधना बता रही थी । उस दिवस, एक ४५ वर्षीय साध्वी स्त्री मेरे पास आई और पूछने लगी “यहां क्या कर रही हो ?” मैंने कहा कि पूर्णकालिक साधक हूं तो वे मुझे अपने जीवनके वृतान्त सुनाने […]
धर्मप्रसारके मध्य ऐसे अनेक विद्वतजनोंसे मेरा साक्षात्कार हुआ है जिनके पास मात्र शाब्दिक तत्त्वज्ञान होते हैं । आद्य गुरु शंकराचार्यने विवेक चूडामणिमें कहा है ‘शब्दजालं महारण्यं चित्त भ्रमणकारणं, अर्थात् शब्दोंका ज्ञान यदि आत्मसात न किया जाए तो तथाकथित तत्त्वज्ञानी व्यक्ति, तत्त्वज्ञानके शब्द रुपी जालमें फंसे हुए दिखाई देते हैं । आजका संस्मरण इस तथ्यसे ही […]
शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु क्या करना चाहिए ? अनेक लोग आजकल दूरभाषपर ज्ञान पाना चाहते हैं तो कुछ लोग दूरभाषपर ही साधना सीखना चाहते हैं । अध्यात्ममें शब्द्जन्य ज्ञानका महत्त्व मात्र २ प्रतिशत और वह, वैदिक सनातन धर्ममें इतना अनन्त है कि यदि कोई जिज्ञासु अपना सम्पूर्ण जीवन मात्र धर्मग्रन्थों वाचनमें निकाल दे तो भी […]