धर्म

ज्ञानकी चोरी है एक महापाप


एक साधकने मुझसे कहा कि कुछ लोग आपके सुवचनोंको अपने नामसे अनेक व्हाट्सएप गुटोंमें साझा कर रहे हैं । मैंने कहा, “कोई बात नहीं, ऐसे लोगोंका मृत्यु उपरान्त ब्रह्मराक्षसका पद सुनिश्चित है जो एक अत्यन्त यातनादायक योनि होती है

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आज्ञापालनका संस्कार बाल्यकालसे अंकित करना अति आवश्यक


पालको ! अपनी सन्तानोंमें आज्ञापालनके गुणको आत्मसात् करानेके प्रयास करें ! मैंने धर्मप्रसारके मध्य पाया है कि आज अधिकांश लोगोंमें आज्ञापालनकी प्रवृत्ति नहीं है; इसलिए उन्हें कितना भी साधना एवं अध्यात्मका दृष्टिकोण देते रहे वे अपनी मनके अनुसार ही सर्व कृति करते हैं; परिणामस्वरूप मनके संस्कार दूर नहीं होते हैं और आज्ञापालनका संस्कार न होनेके […]

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आजके नितिशून्य अभिभावकके अयोग्य सीख


हमारे आश्रममें कुछ दिवस पूर्व एक युवा जिज्ञासु साधना सीखने हेतु आए थे । उनके अभिभावक चाहते थे कि वे प्रशासनिक अधिकारी बने । उन्होंने बताया कि उनके दादाजीने उनसे कहा, “तुम प्रशासनिक अधिकारी बनकर दिखाओ, चाहे भ्रष्ट अधिकारी ही बन जाना; किन्तु मैं तुम्हें लाल बत्तीमें घूमते हुए देखना चाहता हूं, जिससे मैं सबको […]

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क्षणिक सुख हेतु पर्यावरणको दूषित करनेवाले हिन्दू एवं उनपर अंकुश न लगा पानेवाले राज्यकर्ता धिक्कारके पात्र ! 


दीपावालीके तीन दिन पश्चात् भी राष्ट्रीय राजधानी देहली एक प्रदूषित वायु कक्ष (गैस चैंबर) समान दिखाई दे रही है एवं प्रदूषकोंसे लदी धुन्धकी मोटी परतमें यह महानगर पूरे दिन लिपटा रहा, जिससे यहांके लोगोंको विषैली वायुमें सांस लेनेको विवश होना पडा । यह वृत्त अनेक समाचार पत्रोंमें प्रकाशित हुआ है । इसप्रकार देहलीमें प्रदूषणके कारण […]

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समष्टि साधना


कलियुगमें धर्मके तीन अंगोंके ह्रास हो जानेके कारण समष्टि साधनाका महत्त्व सदैव अधिक रहेगा अर्थात् स्वयं साधना करते हुए एवं साधनाका ही भाग मानकर, समाजको धर्मपालन एवं साधना हेतु प्रवृत्त करनेसे ईश्वरीय कृपा अधिक प्रमाणमें सदैव सम्पादित होगी – तनुजा ठाकुर

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हमारा घर


घरका निर्माण तो पशु और पक्षी भी कर लेते हैं, बडप्पन तो तब है जब हमारा घर मन्दिर समान पवित्र हो और उसमें रहनेवाले कुटुम्बजन, साधना, धर्मपालन और धर्मरक्षण हेतु सदैव तत्पर रहें ! मनुष्यका यही गुण उसे पशुसे भिन्न और विवेकशील, श्रेष्ठ श्रेणी दिलाता है, अन्यथा मनुष्य मात्र देहधारी पशु है । – तनुजा […]

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गृहस्थके नित्यकर्म


अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि । यत्कृत्वानृण्य माप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात् ।। अर्थ : शास्त्रविधि अनुसार गृहस्थके नित्यकर्मका निरूपण किया जाता है, जिसे करनेसे मनुष्य देव, पितर और मनुष्यसे संबन्धित सभी ऋणोंसे मुक्त हो जाता है। भावार्थ : कलियुगमें देव ऋणसे मुक्ति हेतु नामजप करना चाहिए, पितर ऋणसे मुक्ति हेतु शास्त्रोक्त विधिसे श्राद्ध इत्यादि कर्म करते […]

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भारतीय संस्कृतिमें बुद्धिजीवीकी परिभाषा


हमारी भारतीय संस्कृतिमें बुद्धिजीवी उसे कहते थे, जो त्यागका आदर्श रख राष्ट्रहित, धर्महित एवं समाजहित हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देते थे । मैकालेकी शिक्षण पद्धतिसे उपजे बुद्धिजीवी मात्र अपने और अपने बच्चेके सुख हेतु सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं ! – तनुजा ठाकुर

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सामान्य मनुष्यको सुख दुःख अनुभव होनेके कारण


अधिकांश लोग सुख और दुखके उतार-चढावका अनुभव इसलिए करते हैं; क्योंकि वे अधिकांश समय यह सोचते रहते हैं कि समाज उनके बारेमें क्या सोचेगा या कहेगा । जब व्यक्ति इस विचारमें रमा हुआ रहता है कि ऐसा क्या करूं कि ईश्वर मुझसे प्रसन्न हों, तो वह सुख-दु:खके अनुभवसे ऊपर उठ, आनंद अवस्थाकी अनुभूति लेने लगता […]

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ईश्वरीय कार्यमें या धर्म कार्यमें अपने धनका दशांश अर्पण करनेपर ही वह शुद्ध होता है !


स्कन्द पुराणमें लिखा है कि धर्मका आधार लेकर भी जो अर्थोपार्जन (धन कमाना ) किया जाता है वह भी ईश्वरीय कार्यमें या धर्म कार्यमें दशांश अर्पण करनेपर ही शुद्ध होता है ! आज अनेक गृहस्थ अपने सुख-ऐश्वर्य , बच्चोंके लिए लाखों रुपए …..

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