साधनाके अभावमें आज हिन्दू समाज किसी भी धार्मिक कार्यमें एकजुट नहीं हो पाता है !
अनेक मंदिर, आध्यात्मिक संस्थाएं, हिन्दू संगठनमें कार्यकर्ता अपने अहंकारके कारण संगठित होकर कार्य नहीं कर पा रहे हैं, आपसी मनमुटाव, अपने अहंकी पुष्टिके कारण समष्टिको क्या हानि हो रहा इसका विचार नहीं करते हैं ! यह सब साधकत्वके ह्रासका संकेत है! अन्य धर्मी मात्र धर्मके नामपर तुरंत संगठित हो जाते हैं ! यथार्थमें हिन्दू धर्मकी ग्लानिका एक मुख्य कारण हिंदुओंमें साङ्घिक भावका अभाव भी है, ध्यान रहे कलियुगमें संगठित रहनेमें ही हमारा हित निहित है ! -तनुजा ठाकुर
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