जो पुरुष मात्र संतान उत्पत्ति हेतु धर्म मार्गका अनुसरण कर, अपनी सहधर्मिणी संग शारीरिक संबंध बनाते हैं और शेष समय ब्रह्मचर्यका पालन कर अपने वीर्यको ऊर्ध्व दिशाकी ओर प्रवृत्त करते हैं ऐसे सदगृहस्थ पुरुषोंको धर्मशास्त्रोमें सन्यासी समान माना है और ऐसे पुरुषोंमें मात्र संकल्प शक्तिमें एक नए ब्रह्मांडकी उत्पत्ति करनेकी क्षमता होती है ।
भगवान शिव उर्ध्वरेतस हैं अतः वे प्रत्येक क्षण नयी सृष्टिका निर्माण करते हैं और पुरानी सृष्टिका लय करते हैं और शिवकी लिंगकी आराधना कर अनेक लोग आत्मज्ञानकी सर्वोच्च स्थितिको प्राप्त हुए हैं ! परंतु आजके अधिकांश पुरुषोंकी सम्पूर्ण शक्ति वासना तृप्तिमें नष्ट हो जाती है , आज समाजको ब्रह्मचर्यका महत्त्व पता ही नहीं और ऐसे कामी पुरुषसे संतान भी तेजस हीन एवं तमोगुणी पैदा होते हैं ! ध्यान रहे वीर्य पतन नहीं वीर्य संरक्षणको पुरुषत्त्व कहते हैं। मात्र संतान उत्पत्ति हेतु संभोगकी प्रक्रियाको यज्ञकर्म कहा गया था -तनुजा ठाकुर