मैं श्रीमद्भगवद्गीतापर भाष्य करनेवाले अनेक विद्वतजनसे मिली; परन्तु उन्होंने गीताके कर्मयोगके सिद्धान्तको आत्मसात नहीं किये थे और मैं कुछ ऐसे सन्तोंसे मिली जो गीताके उन सिद्धान्तसे अनभिज्ञ थे; क्योंकि उनमेंसे कुछ तो भक्तिमार्गी थे और कुछ कम पढे लिखे थे; परन्तु वे खरे कर्मयोगी थे ! इससे मुझे समझमें आया कि कर्मयोगपर भाष्य करना सरल है, उसे जीवनमें उतारना अत्यन्त कठिन और जो उतार लेता है, वह सन्त पदपर आसीन हो जाता है ! -तनुजा ठाकुर
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