हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित स्तरानुसार साधनाकी प्रचीति देनेवाले कुछ प्रसंग ! (भाग – २)


एक बार एक युवतीने मुझे दूरभाष किया और कहने लगी कि उसे सन्यास लेना है , उसका संसारमें मन नहीं लगता और वह किस प्रकार एक उच्च कोटिकी साधक है, इसके विषयमें वह बताने लगी | उसकी बातोंमें मुझे अहंकार और चापलूसी दोनों ही तथ्य झलक रहे थे , वे मुझसे सन्यास दीक्षा हेतु हठ कर रही थी | कुछ समय पश्चात् वह अपने कष्टोंके बारेमें बताने लगीं , मैं समझ गयी कि उन्हें किसीने मेरे विषयमें  बताया है; अतः उसे मुझसे सब कुछ कैसे पूछना है, इसकी उसने अच्छेसे पूर्व सिद्धता की है, मुझे उससे वार्ता करनेमें आनंद नहीं आ रहा था , मैंने सूक्ष्म से उसका आध्यात्मिक स्तर निकाला तो वह चालीस प्रतिशत आया, मैंने उन्हें संक्षेपमें कहा कि अभी आप अपने उत्तरदायित्वका निर्वाह करते हुए ही साधना करें |
अब इसे ईश्वरीय नियोजन ही कहना होगा कि एक वर्ष पश्चात् मैं उसी नगरमें गयी जहां वह रहती थी और वे मुझसे मिलने आयीं और उसके पश्चात् वे मुझसे यह पूछने लगीं कि ऐसा कोई उपाय बताएं कि मेरे भाई और मांको भी मेरी संपत्तिसे कुछ न मिले और सब कुछ मैं अपने नाम कर सकूं | (उनके पिताका देहांत जो चुका है |)  मैं किसी प्रकार उसे उत्तर देना टाल कर वहांसे निकल गयी और मुझे मेरे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित स्तरानुसार साधनाके सिद्धांतपर और श्रद्धा दृढ हुई | जब तक हमारा आध्यात्मिक स्तर साठ प्रतिशतसे ऊपर न हो हमारे लिए सन्यास लेना, त्याग करना अत्यधिक कठिन होता है और जो अपने कुटम्बके सदस्यके लिए त्याग नहीं कर सकते हैं वे क्या उस परमेश्वरके लिए जिन्हें उसने देखा नहीं उनके लिए अपने सर्वस्वका त्याग कर सकते हैं ? – तनुजा ठाकुर



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