स्तरानुसार साधना – हमारे श्रीगुरु द्वारा प्रतिपादित एक चिरंतन सत्य एवं सूक्ष्म अध्यात्मशास्त्र आधारित सिद्धान्त !


हमारे लेखोंके कुछ पाठक आध्यात्मिक स्तरको प्रतिशतकी भाषामें व्यक्त करनेपर सीधे उसे अस्वीकार कर तीखी प्रतिक्रिया देते हैं ; परंतु ईश्वरीय कृपासे मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ, जब मैंने प्रथम बार अपने श्रीगुरुको अध्यात्मशास्त्रको प्रतिशतकी भाषामें प्रतिपादित करते हुए पाया तो मैंने उसका आधार जानना चाहा और इस विषयको बुद्धिसे समझनेके पश्चात उसके सूक्ष्म पहलूको जानने हेतु अपनी सूक्ष्म इंद्रियों जो ईश्वरीय कृपासे पहलेसे ही जागृत थीं, उन्हें साधना कर और विकसित करने लगी; क्योंकि आध्यात्मिक स्तरको सूक्ष्मसे ही समझा जा सकता है | मेरा ऐसा मानना था कि यह अध्यात्मशास्त्रको आध्यात्मिक स्तरके माध्यमसे आधुनिक विज्ञानकी परिभाषामें समझानेका एक उत्तम माध्यम है; अतः मुझे इसे सीखना है और इसे सीखने हेतु जो भी प्रयास करने चाहिए वह अवश्य करूंगी, ऐसा सकारात्मक दृष्टिकोण रखनेपर मैंने पाया कि सूक्ष्म जगतकी अनेक बातें सहज ही आत्मसात होती गईं और धर्म प्रसारकी सेवा करते समय जिज्ञासु और साधकका चुनाव करना भी अत्यधिक सरल हो गया और स्तर जान लेनेपर उन्हें सेवा देना और वह भी स्तरानुसार देना भी सरल हो गया, फलस्वरूप मेरी सेवामें परिणामकारकता भी बढ गयी |
एक जिज्ञासु या साधकका दृष्टिकोण होना चाहिए कि एक आत्मसाक्षात्कारी संतद्वारा बताए गए यह सिद्धांत हैं तो निश्चित ही उसमें तथ्य होगा, तो हम उसे सीखेंगे, उसके विपरीत सीधे ही उस तथ्यको नकार देना अहंका लक्षण है | वैदिक सनातन धर्ममें यह सिद्धान्त पहलेसे ही था तभी तो गुरु, सद्गुरु, ऋषि, राजर्षि, ब्रह्मर्षि, जैसे शब्द हमारे धर्मग्रंथोंका अविभाज्य अंग थे |
कई बार धर्मप्रसारके समय बुद्धिसे किसी साधकका अध्यात्ममें उसका बाह्य समर्पण और लगाव देखकर लगता था कि वह उच्च स्तरका साधक होगा; परंतु जब सूक्ष्मसे उनकी स्तर निकालती थी तो वह अत्यधिक कम आता था और तब मुझे आश्चर्य होता था; परंतु कालांतरमें उसकी वृत्तिको देखकर भान होता था कि सूक्ष्म परीक्षण सही था और बौद्धिक समीक्षा अयोग्य थी !
जैसे हाल ही में एक बाबाजी बडे प्रसिद्ध हो गए सब कहने लगे वे सद्गुरु हैं अर्थात् ८०% आध्यात्मिक स्तरपर है, मैंने सूक्ष्म परीक्षण किया तो पता चला ढोंगी हैं और किसी सूक्ष्म बलाढ्य आसुरी शक्तिके नियंत्रणमें हैं और मात्र ४०% आध्यात्मिक स्तर है और उनके पास पूर्व जन्मकी कुछ तांत्रिक सिद्धियां थीं जो अचानक ही जागृत हो गयी थीं और उनके उपयोगकर उन्होंने अध्यात्मकी दुकान खोल रखी थी ! उनका ध्यान येन-केन प्रकारेण मात्र धन अर्जित करनेपर था और कुछ समय पश्चात यह तथ्य उजागर हो गया ! उनके बारेमें मैंने यह तथ्य कुछ साधकोंके प्रश्न करनेपर बताया भी था, कुछ समय पश्चात वे साधक मेरी बातपर आश्चर्यचकित थे; परन्तु मैं अपने श्रीगुरुके कृतज्ञ हूं कि उन्होंने मुझे सूक्ष्म अध्यात्मशास्त्र सिखाये | ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण प्रत्यक्षमें देकर मेरे गुरुने मुझे आध्यात्मिक स्तरके सूक्ष्म पहलूको सिखाया ! -तनुजा ठाकुर

 



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