अध्यात्म

इंदौर स्थित मानपुरके उपासनाके आश्रममें कार्यरत श्रमिकोंमें साधकत्वके लक्षणोंकी जाग्रति होना (भाग-२)


हमें किसी व्यक्तिने आश्रमके निमित्त गोशाला हेतु कुछ गायें अर्पण की थीं । हमें उन्हें गोशाला बननेके पश्चात भेजने हेतु बोला था; किन्तु उन्होंने उन्हें पहले ही भेज दिया और कहा कि आपके परिसरमें यदि वृक्ष है तो आप वहां बांध सकते हैं । हम उस समय इंदौर नगरमें रह रहे थे और वहींसे सप्ताहमें […]

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इंदौर स्थित मानपुरके उपासनाके आश्रममें कार्यरत श्रमिकोंमें साधकत्वके लक्षणोंकी जाग्रति होना (भाग-१)


नवम्बर २०१८ से इंदौरके मानपुरमें उपासनाके आश्रमका निर्माण कार्य आरम्भ हुआ । उस समयसे कुछ श्रमिक यहां अपनी सेवा दे रहे हैं एवं कुछ जब हम यहां रहने आए तो उन्होंने यहां कार्य करना आरम्भ किया । मैंने ऐसा पाया कि पिछले दो तीन वर्षोंमें जो लोग यहां कार्य कर रहे हैं उनमें बहुत सुखद […]

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साधकोंको बाहरका भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-६)


कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णविदाहिनः । आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामप्रयदाः ॥ यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् । उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥ अर्थात ‘कडवे, खट्टे, लवणयुक्त, बहुत ‘गर्म’, तीखे, शुष्क (रूखे), दाहकारक और दुःख, चिन्ता तथा रोगोंको उत्पन्न करनेवाला आहार अर्थात भोजन, राजस पुरुषको प्रिय होते हैं । जो भोजन अधपका, रसरहित, दुर्गन्धयुक्त, बासी और जूठा है तथा जो […]

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साधकोंको बाहरका भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-५)


आजकल भारतीय आधुनिक भोजनालयका (होटलका) भोजन बहुत प्रेमसे खाते हैं । इसका प्रचलन पिछले दस वर्षोंमें अत्यधिक बढ गया है और अब तो छोटे नगरोंमें भी यह वृत्ति बढ रही है जो बहुत ही दुखद है । यूरोप धर्मयात्राके मध्य ऑस्ट्रियाके साल्जबर्ग महानगरमें एक साधकके घर रुकना हुआ । वे पहले भोजनालय चलाते थे । […]

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साधकोंको बाहरका भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-४)


ईश्वर प्राप्ति हेतु इच्छुक साधकोंको, पवित्र विचार और अपनी इन्द्रियोंको वशमें रखनेवाला तथा चैतन्य प्राप्त करने हेतु सात्त्विक आहार लेना चाहिए । आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः । रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्याआहाराःसात्त्विकप्रियाः ॥ – भगवद्गीता ‘आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीतिको बढानेवाला रसयुक्त, चिकना और स्थिर रहनेवाला तथा स्वभावसे ही मनको प्रिय, ऐसा आहार अर्थात खाद्य पदार्थ […]

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बाहरका भोजन साधकोंने क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-३)


भोजनके तीन भाग होते हैं, स्थूल भाग मल बनता है, मध्यमसे रक्त, रस, मांस और सूक्ष्मसे मन बनता है । इसलिए कहा गया है ‘जैसा खाए अन्न वैसे रहे मन !’ बाहरका अन्नको ग्रहण करनेसे पूर्व चिन्तन करना चाहिए कि क्या यह अन्न खाना मेरे लिए अति आवश्यक है ? यदि ऐसा हो तो ही […]

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बाहरका भोजन साधकोंने क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-२)


साधना अर्थात तमसे रज, उसके पश्चात रजसे सत्त्व गुणकी ओर बढना है तभी हम त्रिगुणातीतकी ओर बढ सकते हैं । जो साधक इस सिद्धान्तको आत्मसात कर लेता है वह अध्यात्मके सर्वोच्च पदको साध्य कर सकता है । हिन्दू धर्ममें त्रिगुणातीत होना अन्य पन्थोंकी तुलनामें अल्प समयमें सम्भव है; क्योंकि हिन्दू धर्मकी दैनिक प्रणालीमें सत्त्वगुणकी वृद्धि […]

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बाहरका भोजन साधकोंने क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-१)


धर्मप्रसारके मध्य अनेक घरोंमें रहना होता है और इस मध्य मैंने देखा है कि यह जानते हुए भी बाहरका बना हुआ भोजन नहीं करना चाहिए तब भी वे इसे ग्रहण करते हैं; इसलिए यह लेखमाला आरम्भ कर रही हूं । एक सरलसा सिद्धान्त ध्यानमें रखें कि हम जो भोजन ग्रहण करते हैं, वह हमारी स्थूल […]

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वस्त्र धोते समय ध्यानमें रखने योग्य तथ्य !


साधको ! इस ब्रह्माण्डमें खरे सन्तोंकी संख्या नगण्य ही है, ऐसेमें यदि आपको कभी सन्तोंके वस्त्र धोनेका सौभाग्य प्राप्त हो तो उसे अपने हाथोंसे भावपूर्वक धोएं ! सन्तोंकी देहसे स्पर्श होनेके कारण उनके वस्त्रोंमें अत्यधिक चैतन्य होता है, जो उनके वस्त्रमें चला जाता है । उन वस्त्रोंके अधिक समय स्पर्शसे, स्पर्श करने वालेपर आध्यात्मिक उपचार […]

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यदि अपने बच्चेको नृत्य सिखाना ही है तो भारतीय शास्त्रीय नृत्य सिखाएं !


धर्मप्रसारके मध्य मैंने पाया कि एक बच्चेके पालक, उसे आजकी आधुनिक नृत्य शैलीमें नृत्य सिखाने हेतु प्रयासरत थे । वह बच्चा उच्च स्तरका साधक है; इसलिए वह उस शैलीको त्वरित सीख गया; किन्तु आजके आधुनिक शैलीके नृत्यमें सात्त्विकता न होनेके कारण उस बच्चेको कष्ट होने लगा और उसकी ऊंचाई आयु अनुसार बढनी अवरुद्ध हो गई […]

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