देववाणी संस्कृत

संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – ६)


संस्कृत भाषामें शब्दोंको किसी भी क्रममें लगाया जा सकता है एवं ऐसा करनेपर भी अर्थमें विकार नहीं आता है । ऐसा इसलिए होता है; क्योंकि सभी शब्द उसकी विभक्ति (भाग) एवं रूपके (एकवचन या बहुवचनके) अनुरूप होते हैं…

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संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – ५)


भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती । तस्यां हि काव्यम् मधुरं तस्मादपि सुभाषितम् ।। अर्थ : सर्व भाषाओंमें संस्कृतका सर्वाधिक महत्त्व है, संस्कृत सबसे मधुर और देवभाषा है । उसमें भी संस्कृतके काव्य अत्यधिक मधुर हैं, उसमें भी सुभाषित तो और भी मधुर होते हैं ! हम सभी भारतीय हिन्दूकी मूल भाषा संस्कृत ही है । […]

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संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – ४)  


संस्कृत देवभाषा है,  संस्कृत वेद भाषा है । यह प्राचीन ज्ञानकी भाषा है, यह भद्रजनोंकी शोभा है ।
आपको समझमें आया हमारे समाजमें अभद्रता कैसे आ गई ? जी हां, जबसे हमने भद्रोंकी भाषा कही जानेवाली देववाणीका परित्याग कर दिया है….

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संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – ३ )


भारतमें संस्कृत भाषा ‘कामधेनु’ रूपमें प्रसिद्ध है, यह विश्वके सर्व भाषाओंकी जननी हैं, यह विज्ञानका पोषण करती  है । कामधेनुका अर्थ सर्व इच्छाओंको पूर्ण करनेवाली, इससे ही इस भाषाका लौकिक एवं परलौकिक दृष्टिसे क्या महत्त्व है…

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संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – १)


संस्कृत देववाणी है; इसलिए यदि उसका अभ्यास नित्य-प्रति दिन करते हैं तो हमारी वाणी ओजस्वी होती है । संस्कृत भाषामें एक भी अपशब्द नहीं है; क्या आप ऐसी विशिष्ट और दैवी भाषा नहीं सीखना चाहेंगे ?….

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संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – २)


संस्कृत संस्कार देनेवाली भाषा है, अत: उसके नित्य उच्चारणसे व्यक्तिके जीवन जीनेकी शैली सुसंस्कृत हो जाती है, जिससे उच्च आदर्शोंके निकट पहुंचनेमें सहायता मिलती है । अपने बच्चोंको सुसंस्कृत करनेहेतु उन्हें संस्कृत सिखाएं !…

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देवभाषा संस्कृत – जर्मनी देशका संस्कृत भाषाके प्रति विशिष्ट प्रेम


१. जर्मनीमें कई दशकोंसे निम्नलिखित शिक्षण संस्थाओंमें संस्कृतका अध्ययन हो रहा है – अ. हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय आ. लाइपजिग विश्वविद्यालय इ. हम्बोलैट विश्वविद्यालय ई. बॉन विश्वविद्यालय २. जर्मनीमें ख्रिस्ताब्द १८०० में विलियम जोंसने प्राचीन भारतके प्रसिद्ध कवि कालीदासद्वारा लिखित ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’का जर्मन भाषामें अनुवाद किया था,  तबसे वहांके लोगोंमें संस्कृत भाषाके प्रति रूचि बढी है । […]

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संस्कृत भाषाका काव्यसौन्दर्य


किरातार्जुनीयम् महाकवि भारविद्वारा महाकाव्यसे उद्धृत निम्नलिखित पंक्तियोंमें चित्रालंकार एवं काव्यसौन्दर्य देखें : न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु । नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत् ।। अर्थ : हे नाना मुखवाले (नानानन) ! वह निश्चित ही (ननु) मनुष्य नहीं है जो जो अपनेसे अशक्तसे भी पराजित हो जाए । और वह भी मनुष्य नहीं है (ना-अना) जो […]

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क्या आप जानते कि भारत वर्षके इन गांवोंमें आज भी संस्कृत बोलते हैं लोग ?


संस्कृत संस्कार देने वाली भाषा है, अत: उसके नित्य उच्चारण से व्यक्तिके जीवन जीनेकी शैली अधिक भारतीय हो जाती है, उच्च आदर्शोंके निकट पहुंंचनेमें सहायक बनती है… आज देशमें ऐसे अनेक गांवोंमें लोगोंकी आपसी बोलचालकी भाषा संस्कृत बन चुकी है। इन गांवोंमें दैनिक जीवनका सम्पूर्ण वार्तालाप सिर्फ संस्कृतमें ही किया जा रहा है। ऐसे ग्रामोंमें […]

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सुभाषितोंमें संस्कृतका महात्म्य


भारते संस्कृता भाषा कामधेनुः प्रकीर्तिता । जननी विश्वभाषाणां विज्ञानस्योपकारिणी ।। अर्थ : भारतमें संस्कृत भाषा कामधेनु रूपमें प्रसिद्ध है, यह विश्वके सर्व भाषाओंकी जननी हैं, यह विज्ञानका संगोपन करती है । ****** संस्कृतं देवभाषास्ति वेदभाषास्ति संस्कृतम् । प्राचीनज्ञानभाषा च संस्कृतं भद्रमण्डनम् ।। अर्थ : संस्कृत देव भाषा है , संस्कृत वेद भाषा है । यह […]

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