धर्मप्रसारके मध्य अनेक बार हमें होटलों (विश्राम गृहों) में भी रुकना पडता है । सूक्ष्म इन्द्रियां कार्यरत होनेके कारण ऐसा कह सकती हूं कि इन स्थानोंपर रुकना अर्थात् कुछ नया घटित होने हेतु सिद्ध रहना होता है, आजका यह लेख इसी प्रकारकी कुछ अनुभूतियोंका संग्रह है । ईश्वरीय कृपासे सदैवसे ही निडर रही हूं एवं […]
व्हाट्सएपके माध्यमसे धर्मधारा सत्संगके प्रसारणके दो वर्ष हुए पूर्ण ख्रिस्ताब्द २०१५ की गुरुपूर्णिमाके दिवस धर्मधारा सत्संग प्रारम्भ हुआ था और इसप्रकार इस सत्संग श्रृंखलाके दो वर्ष इस गुरुपूर्णिमामें पूर्ण हो जाएंगे । सीमित संसाधनों एवं सीमित साधक संख्या होनेपर भी इस सत्संगको हम दो वर्ष नियमित प्रसारित कर सके, इस हेतु हम भगवान शिव एवं […]
जून २०१३में मैं प्रथम बार यूरोप गई । अल्प प्राणशक्तिके कारण मैं विदेशमें भी कहीं घूमने नहीं जाया करती हूं, मात्र धर्मप्रसार हेतु जितनी यात्रा करना आवश्यक है, उतना ही करती हूं । मुझे प्राकृतिक दृश्योंसे अत्यधिक प्रेम है; अतः वहां अल्प समयके लिए बैठना अच्छा लगता है, शेष कहीं जाना मैं टालती हूं; […]
ख्रिस्ताब्द २०१०में जब मैं झारखण्ड स्थित एक ग्राममें स्थित काली मन्दिरमें आरती करवाया करती थी तो उस मध्य नियमित रूपसे कुछ साधकोंमें अनिष्ट शक्तियां प्रकट होती थीं, आरम्भमें मुसलमान भूत, आरती एवं संस्कृत वर्गका विरोध करने हेतु बाल एवं युवा साधकोंमें प्रकट होते थे; परन्तु जब काली माताकी कृपासे उन्हें गति मिलने लगी तो हमारे […]
वर्तमान कालमें योग्य प्रकारसे साधना एवं धर्माचरणके अभावके कारण अनेक घरोंमें अनिष्ट शक्तियोंद्वारा कष्ट हो रहा है जिनका कारण सामान्य व्यक्तिको तो क्या अनेक अध्यात्मविदोंको भी समझमें नहीं आता है । पिछले पांच दशकोंसे अतृप्त पितरोंके कारण भी कष्टके प्रमाणमें अत्यधिक वृद्धि हुई है । धर्मपालन न करनेके कारण जो अर्जित एवं आवश्यक शक्ति एक […]
२५.४.२०१५ के दिवस प्रातःकालसे ही बिना किसी कारण मुझे अत्यधिक अम्लपित्तका (एसिडिटीका) कष्ट हो रहा था, मैंने सभी औषधियां ले लीं, साथ ही पैरोंमें भी अत्यधिक वेदना हो रही थी एवं सम्पूर्ण शरीरमें एक विचित्र प्रकारकी अस्वस्थता थी । वैसे तो व्रणकाका (ट्यूमर) उपचार हुए वह छठा दिवस ही था और उससे एक दिवस पूर्व […]
जैसा कि मैंने बताया था कि सितम्बर १९९० से धर्म और अध्यात्म जानने और सीखनेकी तीव्रता बढती चली गयी और उसके साथ ही पारलौकिक जगतकी अनुभूतियां भी, जिसने मेरी ईश्वरीय अनुसन्धानकी प्रक्रियाको गति दी | इसी सन्दर्भमें एक संस्मरण बताती हूं – हमरे पिताके एक मित्र थे और वे रेल्वेमें चाकरी(नौकरी) करते थे एवं पिताजी […]
सूक्ष्म सत्ताकी शक्तिसे इसप्रकार हुआ मेरा प्रथम साक्षात्कार ईश्वर आज्ञा अनुरूप सूक्ष्म जगतसे सम्बन्धित लेख श्रृंखलाका शुभारम्भ करने जा रही हूं । मैं अकर्ता बनकर, इसे लिख सकूं एवं ईश्वरको इस माध्यमसे समाजको जो भी सिखाना हो वे वैसे ही वे लिखवाकर ले लें, यह इस तुच्छ भक्तकी, उनके श्रीचरणोंमें प्रार्थना है । साथ ही […]
मेरे सूक्ष्म जगत संबंधी अनुभूतियोंपर कुछ हिंदुओंने ‘बकवास है यह सब ‘ ऐसी प्रतिक्रिया दी है !! हमारे सारे धर्मग्रंथोमें सूक्ष्म जगतके विषयोंकी भरमार है ऐसेमें आजका तथाकथित हिन्दु उसे ‘बकवास’ कहकर अपने आध्यात्मिक खोखलेपनका परिचय देते हैं ! ध्यान रहे संत तुलसीदासको प्रभु श्रीरामजीसे मिलवानेका मुख्य श्रेय एक पिशाचको जाता है; अतः हिंदुओंको एक […]
मेरे सूक्ष्म जगत संबंधी लेख पढनेपर कुछ व्यक्ति मुझसे पूछते हैं कि क्या मेरा सूक्ष्म देह मेरे शरीरसे बाहर आ सकता है, क्या उस क्रियाको मैं सहज कर सकती हूं या उसकी अनुभूति ली है ? सूक्ष्म देहका स्थूल देहसे बाहर आकार भिन्न लोकोंमें जाना यह सब अध्यात्ममें गुरुकृपासे सहज संभव होता है ऐसी मेरी […]