अध्यात्म एवं साधना

साधनामें धैर्य धारण करना आवश्यक है


साधना करनेपर उसके तुरन्त परिणाम अनेक बार दिखाई नहीं देते, ऐसेमें धैर्य धारण करना आवश्यक है । साधनाके आरम्भिक कालमें, साधनासे उत्पन्न शक्ति हमारे दोष और संचितको नष्ट करनेमें तीव्र प्रमाणमें व्यय हो जाती है ! साधना करते रहनेसे धीरे-धीरे हमारी अन्तर्मुखता बढती है और हम अपने दोषोंको अल्प (कम) करनेका प्रयास करने लगते हैं […]

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पाप और पुण्य दोनों ही फलित होनेमें समय लगता है !


कुछ समय पूर्व आश्रममें एक स्त्री आईं थीं, वे मुझसे कह रही थीं कि मैं नामजप कर रही हूं; परन्तु मुझपर उसका कोई भी प्रभाव नहीं दिख रहा है । मैंने पूछा, “कबसे नामजप कर रही हैं और आपको क्या कष्ट है ?” तो वे कहने लगीं, “आपके आश्रमके एक साधक प्रसार करते हुए मुझे […]

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द्रष्टा दृश्यावसात बद्ध


‘द्रष्टा दृश्यावसात बद्ध’ अर्थात्  देखनेवाला दृश्य देखकर बद्ध हो जाता है और उसे उस दृश्यसे संबन्धित विचार आते हैं । जैसे गर्मीके मौसममें आमको देखकर आम खानेका विचार सहज ही आता है वैसे ही अश्लील चित्र, गाने, जालस्थान, चित्रपट इत्यादि देखकर मनमें काम वासनाके विचार प्रबल हो जाते हैं, कलियुगका वासना रूपी भस्मासुर अपने पूर्ण […]

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सुखी गृहस्थ जीवन हेतु पति-पत्नीकी प्रवृत्तियां एक समान होनी चाहिए


सुखी गृहस्थ जीवन हेतु पति-पत्नीकी प्रवृत्तियां एक समान होना चाहिए ! या तो दो भोगी प्रवृत्तिके स्त्री-पृरुष सुखी दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर लौकिक सुखका उपभोग कर सकते हैं या दो योगी प्रवृतिके साधक जीव आनन्दमय गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए अपने आध्यात्मिक लक्ष्यको साध्य कर सकते हैं । यदि दोनोंमेंसे किसी एककी प्रवृत्ति भोगी हो […]

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आपके पास जो है वह सब ईश्वरको अर्पण करना होता है


उपासनाके एक साधकको जब मैंने बताया कि पिछले एक वर्षमें आपकी प्रगति नहीं हुई है तो उन्होंने कहा कि मुझे लगा कि आपको फल इत्यादि लाकर खिलाता रहूंगा एवं धनका त्याग करता रहूंगा तो मेरी प्रगति हो जायेगी ! अधिकांश  धनाड्य साधक जो धनका त्याग करते हैं उन्हें ऐसा लगता है कि मात्र धनके त्यागसे […]

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ईश्वरको मात्र पाने हेतु रोते रहनेसे ईश्वर नहीं मिलते..


ऐसे कुछ आध्यात्मिक दृष्टिसे प्रगत साधकसे मिली हूं जो मेरे पास ईश्वरको पानेकी इच्छासे फूट फूट कर रोये हैं और मैंने पाया कि, उन्हें ईश्वरको पानेकी तडप तो है; परंतु उनके प्रयास उस दिशामें नहीं होते हैं, कुछ भावनाओंमें अटक जाते हैं, कुछ अहंकारमें, कुछ लोकैषणामें, कुछ सुनते तो संतोंको बडे प्रेमसे हैं परंतु करते […]

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चूक बतानेपर उसे स्वीकार करनेसे हमारी अंतर्मुखता बढती है


चूक बताने से और उसे स्वीकार करने से हमारे चूकसे निर्माण हुए पाप कर्मके कर्म फलकी तीव्रता न्यून हो जाती है और यदि कोई संत सबके समक्ष किसी साधकके चूकको बताते है तो उस चूकसे निर्मित पाप कर्म पूर्णत: नष्ट हो जाता है ! संत द्वारा बताए गए चूकसे साधकका अहं भी नष्ट होता है । […]

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संत कौन होते हैं ?


ईश्वरके सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान तत्त्वका प्रकट स्वरुप अर्थात् संत । अतः संत सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान होते हैं । जिन्होंने प्रचंड साधना कर ईश्वरसे एकरूपता साध्य कर ली है उन्हें संत कहते हैं परंतु कलियुगमें ऐसे संतोंकी संख्या अत्यल्प है । संतोंको हम इन स्थूलकी आंखोंसे नहीं पहचान सकते हैं कारण क्या है तो संतकी […]

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आइए जाने किसकी शुभकामनाएं सदैव ही फलीभूत होती हैं और क्यों ?


एक बार एक शिष्यने गुरुसे पूछा, “मेरे एक शुभचिन्तकने जो मुझसे अत्यधिक स्नेह करते हैं, उन्होंने  मुझे प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षामें जाते समय कहा था कि इस बार मैं अवश्य ही उत्तीर्ण हो जाऊंगा, परन्तु पिछले दो वर्षोंके समान इस बार भी बहुत प्रयास करनेपर भी मैं अनुत्तीर्ण हो गया, उनकी शुभकामनाएं फलीभूत क्यों नहीं हुईं ?, […]

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मातृशक्ति


  परस्त्रीको मातृशक्तिके रूप में देखने पर मोक्षके द्वार खुल जाते हैं और वैसे ही जैसे परस्त्रीको अयोग्य दृष्टिसे देखने पर नर्कका भोग पृथ्वी पर ही भोगनेको मिल जाता है ! इसलिए हमारे यहांं नवरात्रिमें स्त्रीको मातृशक्तिका प्रतीक मानकर उनकी उपासना की जाती है  -तनुजा ठाकुर    

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