अध्यात्म एवं साधना

भावजागृति हेतु किए जानेवाले प्रयास (भाग – ३)


ईश्वरसे प्रतिदिन इसप्रकार प्रार्थना कर सकते हैं, इससे साधनाको भी गति मिलेगी और साथ ही भाव वृद्धि होनेसे मनुष्य जीवन सार्थक होगा १.  हे प्रभु, मुझे दुःख सहनेकी शक्ति दें और प्रत्येक परिस्थितिमें मेरी साधना अविरत चलती रहे ऐसी आप कृपा करें । २. मेरा नामजप अखण्ड हो, इस हेतु आप ही मुझे प्रयास करना […]

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सत्संगमें हमें कबतक जाना चाहिए ?


सत्संग दो प्रकारका होता है ।  एक होता है, बाह्य सत्संग और दूसरा होता है, आन्तरिक सत्संग ।  जब हमारा योग या जुडाव ईश्वरके साथ अखण्ड हो जाता है और उसका क्रम कभी भी नहीं टूटता है, उसे खरे अर्थमें सत्संग कहते हैं और इस प्रकारके सत्संगको आन्तरिक सत्संग कहते हैं ।  इस प्रकारके सत्संगमें […]

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वर्तमान कालकी विदेशी चिकित्सा पद्धति है अपूर्ण !


आजके आधुनिक चिकित्सकोंको रोगियोंके उपचारके साथ ही साधना करनेकी है अत्यधिक आवश्यकता! पूर्वकालमें वैद्य अच्छे स्तरके साधक होते थे; अतः वे रोगियोंका आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक, तीनों ही स्तरपर परीक्षणकर उनका योग्य उपचार करते थे । वर्तमान कालकी विदेशी चिकित्सा पद्धतियां अपूर्ण हैं; फलस्वरूप आजके आधुनिक चिकित्सा शास्त्रमें (एलोपैथी) पारंगत चिकित्सक मात्र शारीरिक और मानसिक […]

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साधना और योग्य साधनामें भेद


आज अधिकांश व्यक्ति कुछ न कुछ साधना तो करते हैं; परन्तु धर्मशिक्षणके अभावमें योग्य साधना नहीं करते; फलस्वरूप साधना करनेपर जितनी आध्यात्मिक प्रगति होनी चाहिए उतनी नहीं होती है । आज अधिकांश हिन्दुओंकी स्थिति ऐसी है कि जैसे बायां हाथ टूटा हो और दाहिने हाथमें ‘प्लास्टर’ लगाकर कर घूम रहे हैं और कह रहे हों […]

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स्तरानुसार साधना किसे कहते हैं ?


हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित स्तरानुसार साधनाका सार सम्पूर्णसृष्टिका निर्माण ईश्वरने किया है; अतः सजीव-निर्जीव सभीमें कुछ न कुछ मात्रामें सात्त्विकता रहती है और ईश्वरसे पूर्णत: एकरूप हुए सन्तोंकी सात्त्विकता सौ प्रतिशत होती है । मनुष्य योनिमें जन्म लेनेके लिए कमसे कम बीस प्रतिशत सात्त्विकता होनी चाहिए । * बीस प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरका व्यक्ति नास्तिक समान होता […]

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स्तरानुसार साधना – हमारे श्रीगुरु द्वारा प्रतिपादित एक चिरंतन सत्य एवं सूक्ष्म अध्यात्मशास्त्र आधारित सिद्धान्त !


हमारे लेखोंके कुछ पाठक आध्यात्मिक स्तरको प्रतिशतकी भाषामें व्यक्त करनेपर सीधे उसे अस्वीकार कर तीखी प्रतिक्रिया देते हैं ; परंतु ईश्वरीय कृपासे मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ, जब मैंने प्रथम बार अपने श्रीगुरुको अध्यात्मशास्त्रको प्रतिशतकी भाषामें प्रतिपादित करते हुए पाया तो मैंने उसका आधार जानना चाहा और इस विषयको बुद्धिसे समझनेके पश्चात उसके सूक्ष्म पहलूको […]

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हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित स्तरानुसार साधनाकी प्रचीति देनेवाले कुछ प्रसंग ! (भाग – २)


एक बार एक युवतीने मुझे दूरभाष किया और कहने लगी कि उसे सन्यास लेना है , उसका संसारमें मन नहीं लगता और वह किस प्रकार एक उच्च कोटिकी साधक है, इसके विषयमें वह बताने लगी | उसकी बातोंमें मुझे अहंकार और चापलूसी दोनों ही तथ्य झलक रहे थे , वे मुझसे सन्यास दीक्षा हेतु हठ […]

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संत मात्र ईश्वरेच्छासे करते हैं सर्व कृति


साधारण मनुष्य स्वेच्छासे सर्व कृति करता है ! उसके लिए उसकी इच्छा प्रधान होती है ! साधक स्वेच्छाकी अपेक्षा परेच्छासे सर्व कृतिको करनेका प्रयास करता है, इससे मनोलय और अहं लय आरंभ हो जाता है | संत मात्र ईश्वरेच्छासे सर्व कृति करते हैं; अतः कुछ अहंकारियोंको उनकी(संतोंकी) कृति समझमें नहीं आती है और वे संतोंको जिनका […]

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हम ढोंगी गुरुके चुंगलमें कब और कैसे फंस जाते हैं ?


१. यदि हमने अध्यात्मशास्त्रका अभ्यास नहीं किया होता है | २. यदि हमें सूक्ष्मका ज्ञान नहीं होता | ३. यदि हम भौतिक जगतकी वस्तु प्राप्त करनेके लिए गुरु ढूंढते हैं | ४. जब स्वयंकी साधनाका ठोस आधार नहीं होता | ५. जब हम अपनी जीवनकी समस्याओंसे पीछा छुडानेके हेतु भगोडेपनकी वृत्ति रख अध्यात्मका आधार लेना चाहते […]

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धर्म प्रसारकी सेवा


धर्म प्रसार की सेवा के मध्य कुछ साधकोंसे बातचीत करते समय वे अत्यंत सहजता से कहते हैं कि मेरा अहं शून्य है, यदि आपका अहं शून्य हो जाएगा तो इस संसार में एक सामान्य व्यक्ति समान जीवन व्यतीत करना असंभव हो जाएगा, उस अवस्था में न शरीर की सुध -बुध रहती है न अपने आसपास […]

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