ख्रिस्ताब्द २०१४ में एक स्वामीजीसे हम कुछ साधकों की भेंट हुई , जैसे ही उन्हें पता चला कि हम साधकोंमें से एक साधक उनके प्रांत और उनके जातिके हैं, उनका प्रेम उस साधकके प्रति उमड पडा, जब भी उन्हें कुछ भी चाहिए होता था वे उसी साधकका नाम बुलाते थे ! हम सभी साधक स्वामीजीकी […]
आज अधिकांश पुरुषोंका मुख्य ध्येय होता है – स्त्री सुख पाना और धन कमाना । चार पुरुषार्थमें धर्म और मोक्षको आज अधिकांश पुरुष कोई महत्व नहीं देते हैं एवं अर्थ और कामकी पूर्ति भी धर्मके आधारपर नहीं करते हैं; अतः अनेक बार पत्नीद्वारा साधना करनेपर उनके अहंको ठेस पहुंचती है, विशेषकर यदि पत्नी समष्टि साधनामें […]
भावनावश सेवा अर्थात किसी भी परिस्थिति, समुदाय या व्यक्तिको देखकर मन व्यथित हो जाये और उस स्थितिको सुधारनेके लिए जब सेवा करते हैं तो उसे भावनावश सेवा कहते हैं । इस प्रकारकी सेवा करनेवालेको सतत यह भान रहता है कि उसने कुछ अच्छा किया है और वह उस कृतिका कर्ता है । अधिकतर समाजसेवक भावनामें […]
विद्यार्थी जीवनमें मनकी एकाग्रता और आत्मनियंत्रण (ब्रह्मचर्य), यह दोनों साध्य करनेके लिए आत्मबलकी आवश्यकता होती है । यह साधनाद्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है । आजके विद्यार्थियोंको साधनाकी नितांत आवश्यकता है, स्वतन्त्रता पश्चात हमारी निधर्मी सरकारने साधनाका महत्व आजके युवा मनपर अंकित नहीं किया, परिणामस्वरूप आज अनेक युवा व्यभिचार करते हैं, व्यसन करते हैं […]
१. चूक बतानेसे नम्रताका गुण आत्मसात होता है, ध्यान रहे, अहंकारी व्यक्ति अपनी चूकको सदैव ढकनेका प्रयास करते हैं ! २. चूक लिखनेसे और उसे साझा करनेसे उस चूकसे निर्माण हुए पाप कर्मकी तीव्रता अल्प हो जाती है और यदि उस चूककी तीव्रता अनुरूप प्रायश्चित लिया जाए तो उस चूकसे निर्माण हुए पाप कर्मका क्षालन […]
एकान्तमें नेत्र बन्दकर ध्यान करते हुए इन्द्रिय निग्रह करना सरल है, खरा योगी वह है जो इस संसारमें विचरते हुए खुले नेत्रोंसे अपनी इन्द्रियोंका निग्रह कर सके ! कीचडमें रहकर भी, जो कीचडमें न सन पाए ऐसा कमल समान अनासक्त साधक जीव ही, जितेन्द्रिय एवं योगी कहलानेका अधिकारी होता है । – तनुजा ठाकुर
वृद्धावस्थामें साधनाकर सन्त पदपर आसीन हुए सन्त नाम मात्र हैं ! अधिकांश साधक जो साधनाकर सन्त पदपर आसीन हुए, वे अल्प आयुसे ही साधनारत हुए थे । वृद्धावस्थामें जब मनमें अनेक विचार होते हैं, बुद्धि भी काम करना बंद कर देती है और शरीर रोगोंसे ग्रसित हो जाता है, तब साधनाकर ईश्वरप्राप्ति करना अत्यधिक कठिन […]
१. जो निष्काम भावसे अखंड कर्म करता हो | २. जिसका प्रत्येक कर्म अकर्तापनयुक्त हो | ३. जिसके किसी भी कर्मका कर्मफल निर्माण न होता हो | ४. जो सुख-दुखमें समत्व भावमें रहता हो | ५. जो सतत आनन्दमें रहता हो ! – तनुजा ठाकुर
ख्रिस्ताब्द २०१३ में विदेश धर्मयात्राके मध्य एक व्यक्तिने नेपालमें एक प्रवचनका आयोजन करवाया था | उन्होंने कहा कि कल आप जहां जाएंगी वहां कुछ स्त्रियां आपसे दीक्षा लेनेको इच्छुक होंगी | मैंने कहा “परंतु वे मुझे कहां जानती हैं जो वे मुझसे दीक्षा लेने लगीं” | उन्होंने कहा “मैंने अच्छी ‘मार्केटिंग’ की है आपकी” !! […]
जब धर्मका ह्रास होता है तो दुर्जन रुपी पौधे जंगली घासके सामान स्वतः ही उग आते हैं ! -तनुजा ठाकुर