धर्म

एक पाठकने पूछा है कि जन्म-हिन्दू, कर्म-हिन्दू, तथाकथित-हिन्दू और धर्मनिरपेक्ष हिन्दूमें क्या भेद है ?


जन्म-हिन्दू अर्थात् जो समझता है कि मात्र हिन्दू माता-पिताके यहां जन्म लेनेसे मैं हिन्दू कहलाने योग्य हो गया और उसे लगता है ही हिन्दू धर्म स्वयंभू है; अतः वह नष्ट नहीं हो सकता, जबकि….

 

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भगवानके साथ ‘बनिया बुद्धि’ न लगाएं !


एक साधिकाको जब भी मैं कहती कि आप अपनी साधना बढानेका प्रयास करें तो वे कहती पहले मेरा अमुक-अमुक कार्य हो जाए, तत्पश्चात करूंगी ! साधको ! अध्यात्ममें यह ‘बनिया बुद्धि’ न लगाएं, इसे साधकत्व नहीं कहते, ईश्वरको ऐसे भक्त कभी प्रिय नहीं होते, यह ध्यान रखें ! निष्काम भावसे नामजप और सेवा करते जाएं, […]

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कालचक्र अनुसार, कहीं भी विनाशलीला आरम्भ हो सकती है !!


पिछले वर्ष ईश्वरीय प्रेरणासे मैंने अपने पैतृक गांवके काली मन्दिरमें होनेवाली सामूहिक आरतीमें सामूहिक प्रार्थनाओंमें एक प्रार्थना और जुडवा दी थी, वह इस प्रकार थी, “हे काली मां ! आनेवाले भीषण कालमें हमारे राष्ट्र, राज्य, जनपद, नगर, ग्राम, कुलपर आपकी कवच निर्माण रहे, ऐसी आपके चरणोंमें प्रार्थना है ।’’ इस वर्ष मार्च मासमें हमारे गांवमें […]

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अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर खाजा और टके सारे भाजी !!


धर्मयात्राके मध्य जितने भी देशोंमें (नेपालको छोडकर) गई हूं तो मैंने पाया कि वहां रह रहे सभी भारतीय यातायातके सभी नियमोंका अक्षरश: पालन करते हैं ! यह देखकर मैंने जो भारतीय वहां रहते हैं, उनसे पूछा, “यहां आकर सारे भारतीय सतर्कतासे सारे नियमोंका पालन करते हैं, इसका कारण क्या है ?” सिंगापूर, थाइलैण्ड, दुबई, ऑस्ट्रिया, […]

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हिन्दुओंके संस्कारोंका अध:पतन इतना हुआ है धर्मकी शिक्षा देना कहांसे आरम्भ किया जाये, यह एक समस्या है !


आजके आधुनिक बने हिन्दुओंकी स्थिति इतनी विदारक है कि समझमें नहीं आता कि उन्हें धर्म और अध्यात्मका प्रथम पाठ कहांसे पढाना आरम्भ किया जाए; क्योंकि आजके हिन्दुओंको सामान्य धर्माचरणका भी बोध नहीं रहा – सवेरे उठनेपर बिछावनमें ही बिना दन्त धावन या कुल्लाके चाय पीना आरम्भ कर देता है, मल-मूत्र त्यागके पश्चात अपने घरपर रहनेपर […]

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प्रत्येक गृहस्थने साधनाको अपनी दिनचर्याका अविभाज्य अंग बनाना चाहिए !!


प्रत्येक गृहस्थ ने साधना को अपनी दिनचर्या का अविभाज्य अंग बनाना चाहिए तभी जीवन में सुख, शांति, समृद्धि सहजता से प्राप्त होता है और वृद्धावस्था आनंदपूर्वक बीतता है | नामजप करना…..

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त्रिगुणातीत संतोंके आगे राजसिक और तामसिक व्यक्तिने नमन करना चाहिए


कई बार मेरे कार्यक्रममें कुछ शुभचिंतक, नेता, अभिनेता, क्रिकेटर जैसे प्रसिद्ध व्यक्तिको मुख्य अतिथिके रूपमें बुलानेका हठ करते हैं उन्हें लगता इससे कार्यक्रमको प्रसिद्धि सहजतासे मिलेगी; परंतु मेरा ऐसा मानना है कि आजके नेता, अभिनेता ये सब अधिकांशतः रजोगुणी और तमोगुणी होते हैं, जिनके लिए धन एवं ऐश्वर्य ही उनके देवता होते हैं, वस्तुतः मेरे […]

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मनसे ‘सुन्दर’ स्त्रियोंका श्रीकृष्ण निश्चित करते हैं रक्षण !


भगवान श्रीकृष्णने द्रौपदीके शीलका रक्षण इसलिए नहीं किया कि वह तनसे सुन्दर थीं; अपितु इसलिए किया; क्योंकि उनका मन कृष्णमय था, उनका रोम-रोम कृष्ण भक्तिसे ओत-प्रोत था । अतएव स्त्रियों ! यदि आप चाहती हैं कि एक बार बुलानेपर भगवान श्रीकृष्ण आपके लिए भागे चले आएं तो मनकी सुन्दरता बढाएं ! इस हेतु अखण्ड नामजप […]

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हिन्दुओ ! हमारा संगठित रहना कालकी मांग है !


साधनाके अभावमें आज हिन्दू समाज किसी भी धार्मिक कार्यमें एकजुट नहीं हो पाता है ! अनेक मंदिर, आध्यात्मिक  संस्थाएं, हिन्दू संगठनमें कार्यकर्ता अपने अहंकारके कारण संगठित होकर कार्य नहीं कर पा रहे हैं, आपसी मनमुटाव, अपने अहंकी पुष्टिके कारण समष्टिको क्या हानि हो रहा इसका विचार नहीं करते हैं ! यह सब साधकत्वके ह्रासका संकेत […]

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हिंदुओंके आध्यात्मिक दिवालियापनकी एक झलक


एक ओर लक्ष्मी मांके चित्र या मूर्तिकी पूजा करते हैं और दूसरी ओर लक्ष्मी मांके रूपवाले चित्रके पटाखे छोड उनके स्वरूपके चिथडे उडाते हैं, एक ओर गणेशजीकी पूजा करते हैं दूसरी ओर गणेशजीके चित्रवाले मिठाईके डब्बेकी मिठाई समाप्त होनेपर उसे गणेशजीके चित्रके साथ कचडेके डब्बेमें डाल देते हैं  और कहते हैं पता नहीं हमपर लक्ष्मी […]

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