अल्पायुसे ही साधना करना क्यों आवश्यक है ? (भाग – ३)


गृहस्थ जीवनमें होने वाले ८०% समस्याओंका मूल कारण आध्यात्मिक होता है !
आज विश्वकी १०० % जनसंख्या धर्माचरणके अभावमें पितृदोष और अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे पीडित है । अनेक गृहस्थके जीवनमें धन एवं सारे वैज्ञानिक सुख-साधन होते हुए भी उनका जीवन कष्टोंसे घिरा रहता है । पाश्चात्य संस्कृतिके अंधानुकरण और वैदिक संस्कृति अनुसार धर्माचरण नहीं करनेके कारण अधिकांश व्यक्ति दुखी और कष्टमें हैं । इसका मूल कारण है, ब्रह्मचर्य कालमें धर्माचरणका बीजारोपण नहीं हो पाना । हिन्दुओंको न घरमें, न मन्दिर और न ही विद्यालय या महाविद्यालयमें साधना बताई जाती है, परिणामस्वरूप जब ऐसे विद्यार्थी, गृहस्थ जीवनमें प्रवेश करते हैं तो उन्हें अनेक आध्यात्मिक स्तरके कष्ट सहने पडते हैं; क्योंकि शास्त्र वचन है, ‘सुखस्य मूल: धर्म:’ अर्थात सुखका मूल कारण धर्म है, सुखी जीवन हेतु धर्माचरण परम आवश्यक है और धर्म ही हमें अध्यात्मशास्त्र और साधनाकी पद्धति सिखाता है । वैदिक धर्ममें गृहस्थको पञ्चमहायज्ञ करनेके लिए बताया गया है; परंतु आज अधिकांश गृहस्थ यह नहीं करते; अतः उनके जीवनमें आध्यात्मिक कष्टकी भरमार रहती है । – तनुजा ठाकुर



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