अखंड कृतज्ञताका भाव होना द्वैत अवस्थाका अंतिम चरण होता है !


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संतोंकी बात निराली होती है। संत तुकाराम महाराजकी पत्नी कर्कशा स्वभावकी थीं और संत एकनाथ महाराजकी पत्नी सदवर्तनी और शांत स्वभावकी थीं। दोनों ही संत ईश्वरको ऐसे जीवन साथी देनेके लिए कृतज्ञता व्यक्त करते थे।  संत तुकाराम महाराज ईश्वरको कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहते थे कि उन्होने मायाका सही स्वरूप (झगडालू स्त्री देकर)  दिखाकर उनमें वैराग्य उत्तपन्न किया अतः वे ईश्वरके कृतज्ञ है और संत एकनाथ महाराज कहते थे कि उन्होंंने एक सुशील पत्नी देकर उनकी साधनामें सहायता की अतः वे उनके कृतज्ञ हैं  !!!!

संत तुकारामकी पत्नी उनसे सदैव लडाई करती थीं कि वे गृहस्थी चलानेके लिए अधिक पैसे नहीं देते, कई बार तो उन्हें गाली भी देतीं और संत एकनाथ माहरजकी पत्नी जो भी रूखी-सूखी होती वह अपने पतिके प्रेम से बनाकर खिलाती थीं और उनके पूजा पाठ और साधनामें सारी पूर्व तैयारी कर उनकी साधनामें सहायता करतीं थीं  -तनुजा ठाकुर



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