पाप और पुण्य दोनों ही फलित होनेमें समय लगता है !


कुछ समय पूर्व आश्रममें एक स्त्री आईं थीं, वे मुझसे कह रही थीं कि मैं नामजप कर रही हूं; परन्तु मुझपर उसका कोई भी प्रभाव नहीं दिख रहा है । मैंने पूछा, “कबसे नामजप कर रही हैं और आपको क्या कष्ट है ?” तो वे कहने लगीं, “आपके आश्रमके एक साधक प्रसार करते हुए मुझे मिले थे, उन्होंने आठ-दस दिवस पूर्व नामजप करने हेतु बताया था, तबसे कर रही हूं । मेरा पुत्र कुसंगतमें पड गया है, उसे ‘सिगरेट’ और मद्यका (शराबका) व्यसन भी है, वह हम दोनों पति-पत्नीको अत्यधिक क्लेश पहुंचाता है !”
तब मुझे उन्हें बताना पडा कि आठ-दस दिनके नामजपसे कुछ नहीं होनेवाला है, यह तो ‘ऊंटके मुहंमें जीरे’वाली बात है । आपको दो-तीन वर्ष निरन्तर जप करना होगा, तब कुछ अन्तर होगा । उन्होंने कहा कि इतने लम्बे समय तक मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकती, तो मैंने कहा कि तब प्रतिदिन आश्रममें आकर सेवा करें, वे बोलीं कि यह भी सम्भव नहीं, बस आप कृपाकर सब ठीक कर दें ! मुझे उन्हें स्पष्ट बताना पडा कि मेरे पास कोई ‘जादू’की छडी नहीं है, आपके घरमें पितृदोष है और आपका प्रारब्ध भी तीव्र है, ऐसेमें अधिकसे अधिक सेवा और त्याग, यह ही आपको धीरे-धीरे कष्टसे मुक्त करेगा !
  अधिकांश हिन्दुओंको लगता है कि मैंने आजसे साधना आरम्भ की है; अतः कलसे सब कुछ ठीक हो जाना चाहिए; परन्तु यह कैसे सम्भव है ? इतने जन्मोंके पाप, इस जन्मके क्रियमाणद्वारा लिए गए अयोग्य निर्णय, धर्मको गौण स्थान देते हुए सदैव अर्थ और कामको प्रधानता देना, इन सबके कारण आजके कालमें कष्टोंकी तीव्रता अधिक होती है, ऐसे कष्टोंकी तीव्रता अल्प होनेमें दससे पन्द्रह वर्ष लगते हैं !
   अधर्म करते समय हमें यह ज्ञान नहीं होता कि इन कर्मोंका फल भी हमें एक दिन भोगना होगा और इसे भोगते समय हमें कष्ट भी होगा; परन्तु यदि हम कुछ पुण्य करते हैं या साधना करते हैं तो यह सोचते हैं कि अब तो मैं सब ठीकसे कर ही रहा हूं; अतः अब सब ठीक हो जाना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता है, पाप और पुण्य दोनोंके फलित होनेमें कुछ समय तो लगता ही है, जैसे बच्चा गर्भमें आनेपर नौ मास पश्चात ही जन्म लेता है ! आनन्दकी प्राप्तिका अधिकारी तो वही होता है, जो वर्षों लगन और दृढ निष्ठासे साधना, सेवा और त्याग करता रहता है ! अध्यात्ममें कभी त्वरित गतिसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता, यहां कोई लघुपथ (शोर्ट-कट) नहीं होता है । – तनुजा ठाकुर (२३.१०.२०१४)



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