वर्णानुसार साधना


जब कोई साधक बुद्धि अर्पणकर, धर्मप्रसारकी सेवा करता है तो उसे ब्राह्मण वर्णकी सेवा कहते हैं, चाहे उस साधकका जन्म किसी भी जातिमें हुआ हो,  जब कोई धर्म रक्षणार्थ प्राण अर्पण करनेकी तैयारी रखता है, या क्षात्रवृत्तिसे अधर्म या धर्म-ग्लानि रोकता है, उसे क्षत्रिय वर्णकी साधना कहते हैं; और जब कोई सन्त-कार्य या धर्म-कार्य हेतु धनका त्याग करता है, तो उसे वैश्य-वर्णकी साधना कहते हैं । यदि किसीके पास तीक्ष्ण बुद्धि, अदम्य साहस और धन न हो तो भी वह ईश्वर-प्राप्तिका अधिकारी है और वह मात्र शरीरसे सेवा कर ईश्वरीय कृपाका पत्र बन सकता है और इसे ही शूद्र वर्णकी साधना कहते हैं । ईश्वरसे पूर्ण एकरूपता हेतु हमारे पास जो भी है, उसे अर्पणकर, साधना करनेको वर्णानुसार साधना कहते हैं ।-तनुजा ठाकुर



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