वर्ष १९९९ में एक मंदिरमें साप्ताहिक सत्संग लिया करती थी, वहांं अधिकांश स्त्री साधिकाओंकी उपस्थिती हुआ करती थी । एक दिन मैंने देखा, एक पुरुष साधक लगातार कई सप्ताह से उस सत्संग में आ रहे हैं और बड़ी जिज्ञासा से मेरी बातें सुन, उसे लिख कर रखा करते थे । एक दिन एक और पुरुष उस सत्संग में आए, उन्होंंने कहा “आपका सत्संग में प्रत्येक सप्ताह ध्वनि प्रक्षेपक (माइक) से सुनता हूंं परंतु यहा अधिकांश स्त्रीयोंकी उपस्थिती देख मैं थोडा संकोच करता रहा और सत्संगमें नहीं आता था परंतु आज आनेके पश्चात मुझे अभूतपूर्व आनंद मिला परंतु पुनः आने में संकोच होता है ’’ । यह सब सुनकर उस सज्जनकी ओर देखकर पूछा जो नियमित सात सप्ताह से आ रहे थे, मैंने कहा “इन्हें यहांं आने में संकोच आता है आप यहांं कैसे आते हैं, क्या आपको भी संकोच होता है ? उस सज्जनने बडे ही नम्रता से कहा “दीदी, आज्ञा हो तो एक छोटी सी कथा बताऊंं ?” मैंने कहा “हांं बताएं” । उन सज्जन ने जो कथा बताई वह इस प्रकार था ।
“संत मीरा बाई अपने कुछ भक्तके साथ हरि नाम संकीर्तन करते हुए अपने कान्हाके धाम वृंदावन जा रही थीं, एक दिन संध्या हो चला था, उनके एक भक्तने कहा “ मांं, अब हमें आगे नहीं जाना चाहिए हमारे साथ भक्तकी टोलीमें बच्चे और स्त्री साधक अनेक हैं, आगे घना जंगल है, हम आसपास यहीं कहीं रात्री काट लेते हैं । संत मीरा बाईने भी हामी भर दी और कहा की पूरी टोलीके लिए कोई आसरा देखो । एक भक्तने कहा “कुछ ही दूरी पर एक संत का बड़ा आश्रम है हम सब वहीं रुक जाएगे । मांंने हामी भर दी । पूरी टोली उस आश्रम पहुंची । आश्रमका एक सेवक द्वार पर खडा था , मीराबाईने कहा “क्या मुझे और मेरी भक्तकी टोलीको रात्रि निवासके लिए स्थान मिलेगा ?” सेवकने कहा “ मैं स्वामीजीसे पूछ कर बताता हूंं। ” सेवकने स्वामीजीसे मिलने के पश्चात आकर बोला “ स्वामीजीने कहा है इस आश्रममें मात्र पुरुष ही रुक सकते हैं , यहांं सब ब्रह्मचारी रहते हैं। ” मीरा बाईने पंक्ति लिखकर उस सेवकको पकडा दी और कहा “अपने स्वामीजीको देकर आयें “ । स्वामीजीने जैसे ही उस पंक्तिको पढा वे दौड कर आए और मीरबाईके चरणोंमें गिर पडे और कहा “ मांं, हमे क्षमा करना, हम आपको पहचान नहीं पाए । “ मीराबाईने जो एक पंक्ति लिखकर भेजी थी वह इस प्रकार था “ मुझे लगा था कि इस संसार में एक ही पुरुष और शेष सभी नारी , आज पता चला कि दो पुरुष हैं !!! जय श्री कृष्ण “ । यह पढकर उस सन्यासीको समझते देर न लगी कि कोई आत्मज्ञानी उनके द्वार पर आकार खडा है और वे भागे – भागे मीराबाईसे क्षमा मांगने चले आए ।
यह कहकर उस सज्जन ने कहा “ मैं यहांं सत्संगमें धर्मके ज्ञान लेने आया हूंं, कौन दे रहा और कौन श्रोता है इसमे मुझे विशेष रुचि नहीं है । यह सुन एक और जो सज्जन आए थे उन्होने कहा “आपने मेरी आंंख खोल दी अब मैं निश्चित ही प्रत्येक सप्ताह आऊँगा “
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