स्तरानुसार साधना किसे कहते हैं ?


हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित स्तरानुसार साधनाका सार

सम्पूर्णसृष्टिका निर्माण ईश्वरने किया है; अतः सजीव-निर्जीव सभीमें कुछ न कुछ मात्रामें सात्त्विकता रहती है और ईश्वरसे पूर्णत: एकरूप हुए सन्तोंकी सात्त्विकता सौ प्रतिशत होती है । मनुष्य योनिमें जन्म लेनेके लिए कमसे कम बीस प्रतिशत सात्त्विकता होनी चाहिए ।

* बीस प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरका व्यक्ति नास्तिक समान होता है; उसे अध्यात्म, देवी देवता, धर्म इत्यादिमें कोई रुचि नहीं होती ।

* तीस प्रतिशत स्तर होनेपर व्यक्ति कर्मकाण्ड अन्तर्गत पूजा-पाठ करना, तीर्थक्षेत्र जाना, स्तोत्र पठन करना जैसी साधना करने लगता है ।

* पैंतीस प्रतिशत स्तर साध्य होनेपर खरे अर्थमें उसकी अध्यात्मके प्रति थोडी रुचि जागृत होती है और वह साधना करनेका प्रयास आरम्भ करता है ।

* चालीस प्रतिशत स्तर होनेपर वह मनसे नामजप करनेका प्रयास करता है और अनेक प्रकारकी साधनासे एक प्रकारकी साधनामें उसका प्रवास आरम्भ हो जाता है ।

* पचास प्रतिशत स्तर साध्य होनेपर वह व्यावहारिक जीवनकी अपेक्षा आध्यात्मिक जीवनको अधिक महत्व देने लगता है और अखण्ड नामजप करना, सत्संगमें जाना और निष्काम भावसे समष्टि सेवा करना जैसी आध्यात्मिक कृति निरन्तरतासे करने लगता है ।

* पचपन प्रतिशत स्तर साध्य करनेपर खरे गुरुका उसके जीवनमें प्रवेश हो जाता है और वह तन, मन और धन तीनोंका पचपन प्रतिशत भाग किसी गुरुको या गुरुके कार्यके लिए या धर्म कार्यके लिए अर्पण करने लगता है ।

* साठ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरपर खरे अर्थमें सेवा आरम्भ होती है । इससे नीचेके स्तरपर साधक मन एवं बुद्धिद्वारा विषय समझकर सेवा करनेका प्रयास करता है ।

* सत्तर प्रतिशत स्तरपर साधक सन्तके गुरु पदपर आसीन होता है।

* अस्सी प्रतिशत आनेपर सद्गुरु पदपर आसीन होता है और

* नब्बे प्रतिशत स्तरपर ‘परात्पर’ पद साध्य हो जाता है । इसके पश्चात वह जीवात्मा ईश्वरसे पूर्ण एकरूपता हेतु मार्गक्रमण करने लगती है |



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