गुरु देह नहीं एक तत्त्व है


yogasan

गुरु देह नहीं एक तत्त्व है एवं वह तत्त्व भावानुरूप साधकोंका सतत स्थूल और सूक्ष्म मार्गदर्शन करनेमें सक्षम है  इसकी प्रचीति देनेवाली एक और अनुभूति  :

वर्ष २००३ तक मैं नियमित सैर, योगासन एवं कराटेका सुबह-सुबह अभ्यास किया करती थी | वर्ष २००४ आते आते सूक्ष्म युद्ध की तीव्रता बढ गयी और मेरी प्राणशक्ति अल्प होने लगी और व्यायायम जैसी शारीरिक क्रियामें अवरोध आ गया | दिसंबर २००७ में एक साधक के माध्यमसे परम पूज्य गुरुदेवका  संदेश मिला कि प्राणायामसे शरीरकी कालीशक्ति अल्प होकर प्राणशक्तिमें वृद्धि होती है, उसी दिनसे नियमित प्राणायाम करने लगी, उससे प्राणशक्तिकी वृद्धि हुई तत्पश्चात वर्ष २००९ से सूक्ष्म महायुद्धकी तीव्रता अल्प हो गयी और अल्प प्रमाणमें शारीरिक स्वास्थ्य लाभ भी हुआ तबसे अतः प्रेरणा हुई कि शारीरिक क्षमता अनुरूप सैर एवं योगासन या व्यायाम आरंभ करना चाहिए , तबसे इस पुनः दिनचर्यामें डालनेका प्रयास करती रही हूं , अनेक बार यात्रा या व्यस्त दिनचर्या होनेपर भी इसे करनेका प्रयास करती हूं |

सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंके सतत आक्रमणके कारण अल्प हुई प्राणशक्ति के कारण शारीरिक क्षमता अनुरूप कुछ योगासन प्रतिदिन बीस मिनट एवं एक घंटेका प्राणायाम करनेका नियमित प्रयास करती हूं या यूं कहूं इसे अपनी दिनचर्याका अविभाज्य भाग बनानेका सतत प्रयास रहा है यद्यपि ऐसा करनेपर भी मानसिक उत्साहमें वृद्धि तो होती शारीरिक थकावट सुबह-सुबह ही हो जाती है; परंतु यह शरीर, गुरुकार्य हेतु सक्षम रहे इस उद्देश्यसे यह अपनी साधना समझ कर करती हूं , साथ ही यदि संभव हुआ तो रात्रि नौ बजे दस मिनट सैर करनेका भी प्रयास करती हूँ जिससे यदि थकावट हो भी जाए तो रात्रिमें सोनेसे पुनः सुबह तक शक्ति एकत्रित हो जाती है इसकी अंतःप्रेरणा मेरे दो वर्ष पूर्व ही

श्रीगुरुने सूक्ष्मसे दिये इसकी पुष्टि करता हुआ उनका यह सुवचन  –
“जोड अकडनेके पश्चात नहीं, अपितु वें अकडे नहीं इसलिये व्यायाम करें। वर्ष २००७ से शरीरकी प्राणशक्ति अत्यल्प होनेसे मैं कमरेमें ही हूं। कहीं बाहर नहीं जा सकता। कुर्सीपर बैठने जितनी ही मेरे शरीरकी हलचल होती है। मैं कुर्सीमेंभी अधिक समय नहीं बेठ पाता। इसके परिणाम स्वरूप मेरे स्नायू एवं जोडोंका उपयोग ना होनेसे उनकी क्षमता न्यून होगई (Disuse atrophy)  हुई उनकी क्षमता बढाने हेतू मैंने व्यायाम करना शुरू किया। इससे थकान भले ही वैसी ही रही,परंतु  अकडे हुए जोड थोडे ढीले हुवे। व्यायाम करना आवश्यक है,यह छह वर्षों पश्चात मेरी समझमें आया। व्यायामका थोडा लाभ होता है, यह भी समझमें आया। अन्योंके संदर्भमें मेरे समान  ना  हो इसलिये प्रत्येकने शरीरके
सभी जोड ढीले हों, इसलिये सभी जोडोंकी हलचल होनेके लिये सहनशक्तिनुसार व्यायाम करना चाहिये। व्यायामसे मन भी उत्साही होता है। – परम पूज्य  डॉ. जयंत बालाजी आठवले” (४.११.२०१३)
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात २५. १२. २०१३
इस वर्ष जब एक योग प्रशिक्षित स्वामीजी उपासनाके स्थापना दिवस समारोहमें झारखंड पधारे थे तो उनसे विनती कर त्रिदिवासीय योग शिविर समस्त ग्रामवासी एवं साधकोंके लिए आयोजित करवाया जिससे स्वस्थ शरीरके प्रति भी सभी में जागरूकता निर्माण हो |-तनुजा ठाकुर



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