सद्गुरुको ज्ञात होता है कि किस साधकके लिए सगुण साधना आवश्यक है और किसने निर्गुण तत्त्वकी साधना करनी चाहिए ! खरे अर्थमें सद्गुरु तो वह होते हैं जो अपने निज स्वरूपमें या स्थूल स्वरूपमें भी अपने शिष्यको नहीं बद्ध करते हैं तभी तो सद्गुरुको निर्गुण परब्रह्मकी अनुभूति, शिष्यको प्रदान करनेके अधिकारी होते हैं। जो अपने स्थूल रूपमें अपने शिष्यको बद्ध करेंगे वे उन्हें सूक्ष्मकी अर्थात निर्गुण निराकार सर्वव्यापी तत्त्वकी अनुभूति कैसे दे सकते हैं , शिष्यमें गुरु तत्त्वके प्रति श्रद्धा और भावकी निर्मिती हो; इसलिए वे सगुण स्वरुपकी साधना करवाते हैं; क्योंकि भाव निर्माण होनेपर ही शिष्यको भावातीतकी अनुभूति प्राप्त हो सकती है, वैसे ही जैसे सात्त्विक रहनेपर ही त्रिगुणातीतकी ओर प्रवास सम्भव है – तनुजा ठाकुर
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