देवराज इंद्र अपनी सभामें समस्त देवताओंके साथ बैठे पृथ्वीकी स्थितिपर चर्चा कर रहे थे । पृथ्वीके जीवन, वहांकी समस्याओं व मांगोंके विषयमें सभी अपने-अपने विचार रख रहे थे । इंद्रका आग्रह था कि पृथ्वीके जीवनके विषयमें उन्हें यथार्थताका ज्ञान हो जाए तो वे सुधारकी दिशामें कुछ सकारात्मक प्रयास कर सकें । देवताओंने उन्हें पर्याप्त सूचनाएं […]
एक बार कबीरदासजीको लगने लगा कि उनके पास साधक प्रवृत्तिवाले कम और सांसारिक इच्छाकी कामना करनेवाले लोग अधिक आने लगे हैं; अतः एक दिन वे सबके सामने एक वैश्याके घर चले गए । वहां उपस्थति अधिकांश लोग कानाफूसी करने लगे और कहने लगे, “देखा, मैंने तो पहले ही कहा था कि ये ढोंगी हैं, चलो […]
एक संतने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है । देवदूतके हाथमें एक सूची है । उसने कहा, “यह उन व्यक्तियोंकी सूची है, जो प्रभुसे प्रेम करते हैं ।” संतने कहा, “मैं भी प्रभुसे प्रेम करता हूं । मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा ।” देवदूत बोला, “नहीं, इसमें आपका नाम […]
एक बार एक साधु बाबा ने अपने कुटिया में कुछ तोते पाल रखे थे और उन सभी तोते को अपनी सुरक्षा हेतु एक गीत सिखा रखा था “शिकारी आएगा जाल बिछाएगा पर हम नहीं जाएँगे |” एक दिन साधु बाबा भिक्षा मांगने हेतु पास ही के एक गाँव में गए | इसी बीच एक बहेलियाने […]
महाभारतका प्रसंग है । धर्मयुद्ध अपने अंतिम चरणमें था । भीष्म पितामह शैय्यापर लेटे जीवनकी अंतिम घडियां गिन रहे थे । उन्हें इच्छा मृत्युका वरदान प्राप्त था और वे सूर्यके दक्षिणायनसे उत्तरायण होनेकी प्रतीक्षा कर रहे थे । धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह उच्च कोटिके ज्ञान और जीवन संबंधी अनुभवसे संपन्न हैं । अतएव […]
मां पार्वतीजी एक समय भगवान शंकरजीके साथ सत्संग कर रही थीं । उन्होंने भगवान भोलेनाथसे पूछा –“ हे प्रभु ! गृहस्थ व्यक्तियोंका कल्याण किस प्रकार हो सकता है ?” शंकरजीने बताया – “हे देवी ! सत्य बोलना, सभी प्राणियोंपर दया करना, मन एवं इंद्रियोंपर संयम रखना तथा सामर्थ्यके अनुसार सेवा-परोपकार करना कल्याणके साधन हैं । […]
सन्तोंके सिखानेकी पद्धति बहुत ही विचित्र होती है | प्रस्तुत है इस सम्बन्धमें एक ऐसा ही शिक्षाप्रद प्रसंग – एक बार समर्थ स्वामी रामदासजी (शिवाजी महाराजके श्रीगुरु ) भिक्षा मांगते हुए एक घरके सामने खडे हुए। उन्होंने द्वार खटखटाया और अलख लगाते हुए बोले, “जय जय रघुवीर समर्थ!” | घरसे महिला बाहर आई। उसने […]
यह संसार मायाका जाल है । इससे मुक्त होनेका प्रयास किए बिना मुक्ति नहीं मिलती । एक बार गुरु वशिष्ठसे उनके एक शिष्यने पूछा, “गुरुदेव, सांसारिकताके मोहमें फंसे संशयग्रस्त प्राणी आध्यात्मिक उन्नति क्यों नहीं कर पाते ?” वशिष्ठने शिष्यके प्रश्नका उत्तर देने हेतु एक कथा सुनाई – एक आमके वृक्षपर बहुतायतमें फल लगे हुए […]
कुछ संत फक्कड जैसे रहते है और कुछ राजशाही ठाट-बाटमें ऐसा क्यों ? खरे संत चाहे झोपडेमें हो या राजमहलमें, बाह्य वातावरण उन्हें तनिक भी प्रभावित नहीं करता क्योंकि वे आंतरिक रूपसे ईश्वरीय तत्त्वसे जुडे होते हैं | एक बार समर्थ रामदास स्वामीके एक शिष्यने अपनी शंका व्यक्त करते हुए एक अन्य संत रंगनाथ स्वामीके बारेमें […]
अति प्राचीन बात है। दक्षिण भारत में वीरसेन नामक राजा राज्य करते थे। उन्हीं के राज्य में विष्णुदेव नामक एक ब्राह्मण था। एक बार अकाल की वजह से भिक्षा मिलनी बंद हो गई। ( पूर्व काल में ब्राह्मण का मूल धर्म होता था साधना करना और समाज को धर्मशिक्षण देते हुए भिक्षाटन कर जीवन यापन […]