हिन्दू धर्ममें परस्त्रीके प्रति वासनामें लिप्त पुरुषको असुर कहा गया है ! रावण महापंडित था; परंतु इसी वासना तृप्तिकी आगने उसे असुरकी उपाधि दी ! जो व्यक्ति पूरे समाजको वासना प्रधान चित्रपट बनाकर समाजको वासनाकी आगकी ओर धकेल रहा है उसे क्या उपमा देंगे ! – पू. तनुजा ठाकुर
आतिथ्यसत्कार प्रेमको अभिव्यक्त करनेका एक सुन्दर माध्यम है, जो कभी-कभी आये और उसका भी प्रेमपूर्वक जो सत्कार न कर सके तो अपने साथ रहनेवालोंके साथ कैसे प्रेम कर सकते हैं, हमारी संस्कृतिमें आतिथ्य सत्कारको पंच महायज्ञोंमें से एक यज्ञ माना गया है और अतिथि कौन है जो बिना निमंत्रणके आये और हम उसका स्वागत करें […]
भोजन बनाना और भोजन ग्रहण करना दोनोंको वैदिक संस्कृतिमें यज्ञकर्म माना गया है; परंतु आज कल एक पैशाचिक प्रथा देखनेको मिलती है और वह है दूरदर्शन संचपर रज-तम प्रधान कार्यक्रम देखते हुए भोजन ग्रहण करना ! विशेषकर आजकी माएं बाल्यकालसे ही अपने बच्चोंमें यह कुसंस्कार डाल देती हैं और उसका दुष्परिणाम बच्चोंमें विभिन्न कुसंस्कार एवं व्याधियोंके […]
पिछले कोटि-कोटि वर्षोंसे यह वसुंधरा प्रदूषणविरहित थीं । विकसित देशोंके तथाकथित राष्ट्रवादने मात्र पृथ्वीपर ही नहीं अपितु चन्द्र, भिन्न आकाशमण्डलों एवं अन्य ग्रहोंपर भी प्रदूषण फैलाया है, इसे प्रगति थोडे ही कहते है, यह तो मानवके विनाशके लिए अपने ही हाथोंसे अपने पैरपर कुल्हाडी मारने समान है । आज इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तु, ‘फ़ाइबर’, अणु और परमाणु […]
अग्निहोत्र अर्थात् अग्निके माध्यमसे सृष्टिके संचालनकी भूमिकाका निर्वहन कर रहे देव-तत्त्वोंको आहुति (हविष्य) अर्पण करना । सूर्योदय और सूर्यास्तके समय अग्निहोत्र करनेसे वायुका शुद्धिकरण होता है । अग्निहोत्र करनेसे मनमें अच्छे विचार आते हैं । अंतर्मनको शक्ति मिलती है । नियमित रूपसे अग्निहोत्र करनेपर स्वास्थ्य लाभ होता है । अग्निहोत्र करनेसे वायुमंडलमें उपस्थित हानिकारक कीटाणुओंका […]
तैतिरीय उपनिषदमें कहा गया है कि ‘देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यं’ अर्थात देव और पितर हेतु बताए गए धर्माचरणमें तनिक भी उंच-नीच नहीं होनी चाहिए | – पू. तनुजा ठाकुर
वर्ष २००० से २०१९ तक का कालखंड सभी भक्तों के लिए कष्टप्रद है, यह अनेक संतोंने बताया है ! अतः जब भी भक्त किसी भी सुप्रसिद्ध मंदिर, यात्रा और तीर्थक्षेत्र में जाते हैं तो यात्रा निर्विघ्न होने हेतु प्रतिदिन उसी निमित्त संकल्प लेकर अपने इष्ट देवता का पंद्रह मिनट सुमिरन अवश्य करें ! यह जप यदि […]
पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय। पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर।। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर। नकुल सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।। काश्यश्च परमेष्वास शिखण्डी च महारथ। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजिताः।। द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।। अर्थ : श्रीकृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र शंख बजाया। कुंती-पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख, नकुल […]
जो भी स्त्री अपने सहज लोक लाज को त्याग कर अंग प्रदर्शन कर अन्यों में वासना को जागृत करती हैं वह भी महापाप की अधिकारी होती है ! स्त्रियों का नैसर्गिक अलंकार उसकी स्त्री सुलभ लज्जा है , यदि वह समाप्त हो गया तो सब कुछ समाप्त हो गया ! इतिहास साक्षी है अधिकांश अंग […]
घर में अतिथियोंको बुला कर मांसाहार करना, मद्य पिलाना, मोमबत्ती जलाकर देर रात ऊंचे स्वरमें पाश्चात्य संस्कृतिके गाने लगाकर नृत्य करनेसे घर देवताओं दूर जाते हैं और और अनिष्ट शक्ति वास करने लगती है अतः आधुनिक शैलीकी ‘पार्टी’ करने की अधार्मिक कृतिसे बचे !