धर्म

अधर्मसे अर्जित धन दुःखका बनता है कारण


आजकल अनेक लोग येन-केन प्रकारेण धनका संचय करते हैं, उन्हें ऐसा लगता है कि ऐसा करनेसे वे अपनी भावी पीढीके लिए सुख-शान्तिकी निश्चिती कर रहे हैं; किन्तु ऐसा है नहीं । ऐसे व्यक्ति अपने लिए पापकर्म निर्माणकर अपना इस लोकमें एवं परलोकमें अहित कर रहे होते हैं । अधर्मसे संचित धन अस्थाई होता है, उससे […]

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मैकाले शिक्षण पद्धतिने कर दी हिन्दुओंकी दयनीय स्थिति


एक युवा जिज्ञासु आश्रममें कभी-कभी आकर सेवा करते हैं । एक दिवस मैंने उन्हें भारतीय परिधान धारण करनेका महत्त्व बताया । एक बार वे सेवा हेतु आए और मैं अपने कक्षसे निकलकर बाहर आई तो मैंने उन्हें कुर्ता-पायजामा धारणकर सेवा करते हुए पाया; किन्तु आश्रमसे जाते समय वे पुनः पाश्चात्य वेशभूषामें आ गए । मुझे […]

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वर्ण व्यवस्था आधारित प्राचीन भारतीय संस्कृतिकी कुछ विशेषताएं


वर्ण व्यवस्था आधारित प्राचीन भारतीय संस्कृतिकी कुछ विशेषताएं * पद और प्रतिष्ठा जन्म अनुसार नहीं, गुण और कर्म अनुसार मिलता था । * जिनकी जितनी अधिक साधना, त्याग और धर्माचरणको कृतिमें लानेके प्रयास होते थे, उन्हें समाजमें उतना ही उच्च स्थान प्राप्त होता था अर्थात् सम्मानके अधिकारकी पात्रता, साधना और त्यागके आधारपर  हुआ करती थी […]

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धर्मविहीन भोगवादी संस्कृति ही आसुरी संस्कृति


हम अधिकांश हिन्दू, बिना धर्मके अपने जीवनकी कल्पना नहीं कर सकते हैं; किन्तु जब धर्मयात्रा अन्तर्गत विदेश गई तो मुझे ज्ञात हुआ वहां एक ऐसी मानव प्रजाति भी हैं जो बिना धर्मके सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देती है । मैंने विदेशमें देखा कि वहांके अनेक निधर्मी लोगोंको अपने जीवनका उद्देश्य ही ज्ञात नहीं होता, क्षणिक […]

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धर्मके रक्षण एवं संवर्धन हेतु उसे राज्याश्रय मिलना परम आवश्यक


जितनी सरलतासे एक हिन्दू, मुसलमान या ईसाई बन जाता है, उतनी ही सरलतासे आपने किसी मुसलमान या ईसाईको हिन्दू बनते देखा है क्या ? इसका मूल कारण क्या है ? मस्जिदोंमें मुसलमानोंको मौलवी एवं गिरिजाघरोंमें ईसाइयोंको पादरी अपने ‘तथाकथित धर्म’की घुट्टी बाल्यकालसे ही पिलाते हैं; वहीं हिन्दुओंको अपने महान धर्म और संस्कृतिके विषयमें विधिवत ज्ञान […]

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इस्लामी देश धर्म अधिष्ठित हैं तो अन्य धर्मियोंका विरोध, वहां क्यों होता है ?


एक व्यक्तिने पूछा है कि कुछ अहिन्दू देशोंमें धर्म अधिष्ठित राज्य प्रणाली हैं; परन्तु वहां अन्य धर्मके अनुयायीको अपने धर्म अनुसार धर्माचरण करनेकी एवं धर्मप्रसार करनेकी आज्ञा क्यों नहीं है? उत्तर : इसका कारण है कि उनके धर्मके ‘ठेकेदारों’को डर होता है खरा धर्म यदि उनके अनुयायियोंको ज्ञात हो गया तो वे उस तथाकथित धर्मको […]

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हिन्दू योद्धा


आजकल अनेक हिन्दू संगठन एवं धर्मगुरु, हिन्दुओंको अधिक सन्ततिको जन्म देनेका सुझाव दे रहे हैं; उनसे यह विनम्रतापूर्वक पूछना चाहूंगी कि यदि आज ९५ कोटि हिन्दूके रहते हुए प्रतिदिन हिन्दुओंके आस्थाकेन्द्रोंपर एवं हिन्दुओंपर इतने आघात हो रहे हैं तो क्या २०० कोटि हिन्दू होनेपर, यह स्थिति परिवर्तित हो जाएगी ? ध्यान रहे, निद्रिस्त हिन्दू चाहे […]

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बबूलके बीज बोएंगे तो उसपर आमके फल कैसे आ सकते हैं?


कुछ समय पूर्व मैं देहलीके एक वृद्धाश्रममें प्रवचन हेतु गयी थी तो मुझे ज्ञात हुआ कि वहां रहनेवाले अनेक वानप्रस्थियोंकी सन्तानें उच्च शिक्षित हैं एवं कुछ तो विदेशमें उच्च पदपर किसी बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठानमें कार्यरत हैं ! वहांके कुछ वानप्रस्थी अपनी सन्तानोंको उन्हें वृद्धावस्थामें अनदेखी करने हेतु कोस रहे थे !   आजके हिन्दू माता-पिता अपनी सन्तानोंको […]

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धर्मप्रेम


जब किसी मुसलमानके घरसे कोई सदस्य जिहादके लिए जाता है तो माता-पिता एवं अन्य कुटुम्बके सदस्य उनपर गर्व कर उनका मनोबल बढाते हैं, वहीं जब कोई हिन्दू युवा धर्मकार्य हेतु आगे बढकर कुछ करना चाहता है तो उसके घरके सर्व सदस्य उसके मार्गमें अवरोध निर्माण कर, उसे हतोत्साहित करते हैं

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धनके योग्य उपयोग न होनेपर उसका नाशकी ओर प्रवृत्त होना


शास्त्र अनुसार धनकी तीन गति होती है भोग, दान या नाश । केंद्र शासनद्वारा ५०० या १००० के नोटपर लगाए गए प्रतिबन्धके कारण, इस देशके भ्रष्टाचारियोंके धन, तीसरी गतिकी ओर अनुक्रमण करने लगी है। कहीं बोरियोंमें भरकर नोट जलाए जा रहे हैं तो कहीं फेंके जा रहे हैं  -तनुजा ठाकुर  (१०.११.२०१६)

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