अनेक हिन्दुत्ववादी भावनामें बहकर हमारे धर्मकार्यमें अपना कौशल्य अर्पण करना आरम्भ कर देते हैं; परंतु व्यष्टि साधनाके ठोस आधारके अभावमें उन्हें हमारे कार्यमें सहयोग देते समय इतनी अडचनें आती हैं कि वे उस सेवाको मध्यमें ही छोड देते हैं । जबकि मैं पहले ही उन्हें सतर्क कर देती हूं कि वर्तमान कालमें धर्मकार्यमें यथा शक्ति […]
१. जो कुछ नूतन सीखनेकी अपेक्षा, अपने अधपके ज्ञानको बांटनेमें अधिक रुचि रखता हो । २. जो अहंकारी हो । ३. जिसमें सीखनेकी प्रवृत्ति न हो । ४. जिसमें सुननेकी नहीं, अपितु मात्र सुनानेकी प्रवृत्ति हो । ५. जिसमें एक ही बातको बार – बार बतानेपर भी आचरण करनेकी प्रवृत्ति न हो । ६. जो […]
भक्त वह है जो एक क्षणके लिए भी विभक्त नहीं होता अर्थात् जिसका प्रत्येक परिस्थितिमें ईश्वरसे अखंड अनुसन्धान बना रहे, वह भक्त कहलाता है | अध्यात्मिक भाषामें कहें तो भक्तिके अन्तिम चरणका अनुभव करनेवाले साधकको को भक्त कहते हैं ! – (पू.) तनुजा ठाकुर
मेरे लेखोंके एक पाठकने पूछा है कि आप यदि मात्र हिन्दुओंसे ही प्रेम करेंगींं तो प्रत्येक जीव मात्रसे प्रेम कैसे कर पाएंगी और सर्वत्र ब्रह्मकी प्रतीति कैसे होगी ? उत्तर अत्यन्त सरल है । सधानाके दो अंग होते हैं, एक होता है ‘व्यष्टि साधना’ और दूसरा ‘समष्टि साधना’ । साधनाके दोनों अंगोंमें सामंजस्य बनानेपर ही […]
भगवान श्री कृष्णने कहा है ‘परित्राणाय साधूनां’ अर्थात मैं साधकोंका रक्षण करता हूं; अतः सज्जनो, साधक बनें ! भगवान श्री कृष्णने अर्जुन और द्रौपदीकी सहायता इसलिए की; क्योंकि वे भक्त थे ! ‘मैं किसीको कष्ट नहीं पहुंचाता हूं; मैं अपने सर्व सांसारिक कर्म निष्ठासे करता हूं; अतः ईश्वर मेरा रक्षण करेंगे’ इस भ्रममें न रहें […]
सर्वप्रथम गुरुकृपा पाने हेतु साधना करनी पडती है, तत्पश्चात गुरुकृपा बनाए रखने हेतु साधना करनी पडती है, अर्थात् गुरुकृपाका प्रवाह सतत हो, इस हेतु साधनामें अखण्डता बनाये रखना परम आवश्यक है अर्थात् मोक्षप्राप्ति तक साधकको साधनारत रहना चाहिए ! – तनुजा ठाकुर
मैं श्रीमद्भगवद्गीतापर भाष्य करनेवाले अनेक विद्वतजनसे मिली; परन्तु उन्होंने गीताके कर्मयोगके सिद्धान्तको आत्मसात नहीं किये थे और मैं कुछ ऐसे सन्तोंसे मिली जो गीताके उन सिद्धान्तसे अनभिज्ञ थे; क्योंकि उनमेंसे कुछ तो भक्तिमार्गी थे और कुछ कम पढे लिखे थे; परन्तु वे खरे कर्मयोगी थे ! इससे मुझे समझमें आया कि कर्मयोगपर भाष्य करना सरल […]
शब्दातीत अध्यात्मकी अनुभूति हो जानेपर शब्दोंका कोई महत्व नहीं रह जाता; परंतु यह भी एक कटु सत्य है कि आध्यात्मिक यात्राकी शुभारम्भ शब्दजन्य जानकारीसे ही होती है | – तनुजा ठाकुर
यदि हमें हमारे प्रारब्धकी तीव्रताको सहजतासे सहन करना हो या अपने संचित कर्मोंको नष्ट करना हो तो दोनों ही स्थितियोंमें नामजप एक सरल माध्यम है । नामजपसे प्रारब्धकी तीव्रताका प्रभाव ऐसे न्यून होता है जैसे कोई कोयलेकी अग्निपर चल रहा हो और तेज (अग्नि) तत्वकी सिद्धि होनेके कारण उसे अग्निकी उष्णताका प्रभाव नहीं पड रहा […]
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय॥ अर्थ : दुखमें ईश्वरका स्मरण सहज हो जाता है; परन्तु सुख रहनेपर ईश्वरका स्मरण किंचित ही आता है; अतः कुंतीने भगवान श्रीकृष्णसे कहा था कि मुझे दुख चाहिए, जिससे आपका स्मरण रहे । सुख हमें […]