हमारी भारतीय संस्कृतिमें गुरु-शिष्य परंपरा हमारे सांसारिक जीवनमें अन्तर्भूत थी | प्रथम पुत्रके लिए पिता, अनुजके लिए अग्रज बंधु, पत्नीके लिए पति, यह गुरु समान होते थे | और कर्मनिष्ट त्याग-पारायण ब्राह्मण सम्पूर्ण समाजका गुरु होता था | कालांतरमें धर्मका ह्रास हुए और संबंधोंसे यह आध्यात्मिक आधारका ह्रास होने लगा और अब वह लगभग समाप्तसा हो गया है | जबतक गुरुमें तप, त्याग, प्रेम और धर्मका प्रतिबिंब दिखाई नहीं देता शिष्य उनके प्रति शरणागत नहीं हो पाता |-तनुजा ठाकुर
Leave a Reply