१. जब शिष्य कुपात्र हो और अत्यधिक प्रयास करनेपर भी वह अपने दुर्गुणोंको दूर करनेका प्रयत्न नहीं करता !
२. शिष्यने गुरुभक्तिकी पराकाष्ठाकी अनुभूति ले ली हो तब गुरु शिष्यमें कोई भेद नहीं रह जाता और गुरु, शिष्यको इस ब्रह्मांडमें एकाकी विचरण करनेके लिए छोड देते हैं ! गुरु शिष्यका ९९ पग हाथ पकड कर चलाते हैं , अंतिम पग मोक्षकी ओर शिष्यको स्वयं ही लेना होता है ! – तनुजा ठाकुर
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