गुरु, शिष्य एवं साधक

साधकके गुण (भाग- १६)


अपने सह-साधकोंसे द्वेष न करना
द्वेष करना, यह षड्रिपुओंमेंसे एक मुख्य रिपु है । साधनाके मध्य अनेक बार कुछ साधक अपने सह-साधकोंसे कुछ वीशिष्ट कारणोंसे द्वेष करने लगते हैं, ऐसेमें अनेक बार उनसे जाने-अनजाने पापकर्म हो जाते हैं, जिससे उनकी साधनाका क्षरण होता है…..

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साधकके गुण (भाग- १५)


सतत ईश्वर व गुरुसे अनुसन्धान रखनेवाला
साधकका मूल उद्देश्य अपने गुरु या ईश्वरसे एकरूप होना होता है; अतः वह जहां भी हो, जिस परिस्थितिमें भी हो, वह अपना अनुसन्धान ईश्वर या गुरुसे बनाए रखने हेतु प्रयत्नशील …..

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साधकके गुण (भाग-१३)


मुमुक्षुत्वका होना
साधनाका पथ बहुत ही कठिन पथ होता है, इसे आप कांटोंभरा पथ भी कह सकते हैं, इसलिए इस पथपर चलने हेतु दृढता यह गुण तो अति आवश्यक है; किन्तु मन दृढ तभी रहता है जब अपने लक्ष्यको पानेकी तीव्र उत्कंठा….

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साधकके गुण (भाग- १४)


सहसाधकसे अपने चूकें पूछ कर लेना और यदि वह चूकें बताए तो उन्हें सहजतासे स्वीकार करना
जो साधक एकाकी साधना करता है, उसकी अपेक्षा जो सह-साधकोंसे साथ रह कर साधना करता है, उसकी प्रगति अधिक शीघ्र होती है; इसीलिए आश्रमका निर्माण सन्त करते हैं जिससे……

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साधकके गुण (भाग-१२)


वैदिक संस्कृति अनुसार आचरणसे व्यक्ति सत्त्व गुणकी ओर शीघ्र बढता है जिससे उसके लिए साधना करना सरल हो जाता है ! अतः साधकका वर्तन वैदिक संस्कृति अनुकूल होना चाहिए…….

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साधकके गुण (भाग – ११)


गुरु या ईश्वरके प्रति निर्विकल्प रहना
साधनाके पथपर श्रद्धा और भावका अत्यधिक महत्त्व होता है, वस्तुत: गुरुतत्त्व या ईश्वरीय तत्त्व साधककी भक्ति अनुरूप ही कार्य करता है | अनेक बार हमें लगता है कि समाज या अन्य व्यक्ति…..

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साधकके गुण (भाग-१०)


धर्म एवं अध्यात्मके सीखे हुए तथ्योंको व्यवहारमें लाना

साधकका एक महत्त्वपूर्ण गुण होता है कि उसकी कथनी और करनीमें अन्तर नहीं होता ! उसमें सीखनेकी वृत्ति बहुत अधिक होती है……

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साधकके गुण (भाग-९)


किसी भी सेवाके लिए सदैव तत्पर रहना

गुरु या ईश्वरको यह ज्ञात होता है कि हमारी आध्यात्मिक प्रगति हेतु कौनसी सेवा पूरक होगी और वे उसीप्रकारकी सेवा हमें देते हैं ! सेवा, गुरु या ईश्वरको प्रसन्नकर उनकी कृपा पानेका एक सरल……

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साधकके गुण (भाग-७)


स्वच्छ रहना

आप सोचेंगे, यह भी कोई बतानेवाली बात है ?! किन्तु मैंने ऐसा अनुभव किया है कि जैसे-जैसे व्यक्ति तमोगुणी आचरण करता है, वह आलसी हो जाता है और इस कारण वह अव्यवस्थित एवं अस्वच्छ……

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साधकके गुण (भाग-६)


साधक और कार्यकर्तामें एक मुख्य भेद यह होता है कि साधक अपना कार्य करते समय अपनी व्यष्टि साधनापर अवश्य ध्यान देता है, वहीं कार्यकर्ताको व्यष्टि साधनामें या तो रुचि नहीं होती है या उसे उसका महत्त्व ज्ञात नहीं होता या महत्त्व ज्ञात होनेपर भी क्रियमाणसे उसे करनेका……….

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