साधना

कलियुगमें समष्टि साधनाका अधिक महत्त्व


कलियुगमें धर्मका एक ही अंग व्याप्त होनेके कारण समष्टि साधनाका महत्त्व ७० प्रतिशत है एवं व्यष्टि साधनाका महत्त्व ३० प्रतिशत है । व्यष्टि साधना अर्थात स्वयंकी कोई इच्छा पूर्ति या स्वयंकी आध्यात्मिक प्रगतिके उद्देश्यसे की जानेवाली साधना एवं समष्टि साधनाका अर्थ है, समाजको धर्मपालन एवं साधनाकी ओर उन्मुख करने हेतु किये जानेवाले प्रयत्न ! श्रीगर्गसंहिताके […]

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साधना क्यों करें ? (भाग – ३)


साधनासे सकाम और निष्काम दोनों ही ध्येयकी पूर्ति होती है; अतः यह लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही सुखकी इच्छा रखनेवालोंके लिए उपयोगी है । साधना करनेसे मनुष्य जीवन सार्थक होता है, अर्थात मनुष्यके जन्म लेनेका मूलभूत उद्देश्य पूर्ण होता है ।

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साधना क्यों करें ? (भाग – २)


अधर्म एवं मूलं सर्व रोगाणां‘ अर्थात हमारे रोग और शोकका मूल कारण हमारेद्वारा इस जन्म या पिछले किसी जन्ममें किया गया अधर्म होता है और इसपर मात पानेका मात्र एक ही उपाय होता है और वह है साधना करना । साधनाके माध्यमसे जो तीव्र प्रारब्ध होते हैं अर्थात तीव्र स्तरके दुःख होते हैं…..

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साधना किसे कहते है


‘स्व’को मिटानेकी (अहं निर्मूलनकी) प्रक्रियाको साधना कहते है और यह अध्यात्मशास्त्र सिखाता है ।

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क्यों करें अखण्ड नामस्मरण ? (भाग – ४)


साक्ङेत्यं पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा । पारिहास्यं वा स्तोभं हेलनमेव वा । वैकुण्ठनामग्रहणमशेषाघहरं विदु: ।। पतित: स्खालितो भग्न: संदष्टस्तप्त आहत: । हरिरित्यवशेनाह पुमान्नर्हति यातनाम् ।।    अर्थ : अर्थात संकेतमें, परिहासमें, तान अलापनेमें अथवा किसीकी अवहेलना करनेमें भी यदि कोई भगवानके नामोंका उच्चारण करता है तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । […]

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क्यों करें अखंड नामस्मरण ? (भाग – ३)


भगवानके नामजपकी महिमा अनन्त है, यह सभीको तारनेकी शक्ति रखता है । नामजपके कारण साधक और संन्यासियोंकी तो आध्यात्मिक प्रगति होती ही है, साथ ही यह पापी जीवोंके संचितको भी नष्ट कर उसे सर्व पापकर्मोंसे मुक्त करती है एवं उसके मलिन मन व बुद्धिको शुद्ध करती है सात्त्विक बनाकर ईश्वर उन्मुख करती है । रत्नाकर […]

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क्यों करें अखण्ड नामस्मरण ? (भाग – २)


कलियुगमें मायाका प्रभाव अत्यधिक होता है, ऐसेमें सामान्य बद्ध जीवके लिए साधना हेतु समय निकालना कठिन होता है, ऐसेमें उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते भगवानके नामका सुमिरन करना सबसे सरल साधना मार्ग है । इससे जीवमें ईश्वरके प्रति प्रेम निर्माण होता है, उसमें थोडी अन्तर्मुखता आती है और वह साधनाको प्रधानता देने लगता है । इसी प्रयाससे […]

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क्यों करें अखण्ड नामस्मरण ? (भाग – १)


ईश्वरका नाम एक कामधेनु गाय एवं कल्पतरु वृक्ष समान है । यह नाम सकाम और निष्काम दोनों ही भक्तोंके मनोरथोंको पूर्ण करनेका सामर्थ्य रखता है । भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही अखण्ड नामस्मरण कर हमें यह सीख देते हैं कि नामजप सभीके लिए कल्याणकारी है । इसकी महिमाको शब्दोंमें व्यक्त करना असम्भव है, […]

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यूरोपके देवालयोंमें आरतीके मध्य होनेवाले अधर्म


यूरोपमें हिन्दुओंके अनेक देवालयोंमें (मन्दिरोंमें) मैंने आरतीके समय अनेक अधर्म होते हुए देखा है । वहां आरतीके समय एक-एक कर जितने भी भक्त देवालयमें उपस्थित रहते हैं, सभी एक या दो मिनिट आरतीकी थालको देवताके समक्ष घूमाते हैं । इस क्रममें जो भी आरतीके लिए उपस्थित रहते हैं, किसीका भी मन आरतीके मध्य एकाग्रचित्त नहीं […]

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सकाम और निष्काम साधना


सकाम साधना अर्थात् माया या संसारकी किसी भी वस्तुकी इच्छा रख साधना करना और निष्काम साधनाका अर्थ है, मात्र ईश्वरीयकृपा, गुरुकृपा, आनन्द या शान्ति हेतु अर्थात् आध्यात्मिक प्रगतिके लिए साधना करना …….

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