गुरु, शिष्य एवं साधक

साधक किसे कहते हैं ? (भाग – १०)


साधकत्व एवं त्यागका सीधा सम्बन्ध होता है । जिसमें त्यागकी वृत्ति जितनी अधिक होती है, वह उतना ही अच्छा साधक होता है । साधक, अपने तन, मन, धन, प्राण, बुद्धि और अहंंका  अत्यन्त सहजतासे ईश्वरप्राप्ति, धर्मरक्षण या गुरुकार्य….

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साधक किसे कहते हैं ? (भाग – ९)


जब कोई स्वयंप्रेरित होकर नियमित तन, मन, धन, बुद्धि और अहंका त्यागकर, निष्काम भावसे मात्र ईश्वरीय कृपा सम्पादन करने हेतु अनेक वर्ष बिना किसी बाह्य प्रोत्साहनके साधना करता है तो उसे साधक कहते हैं । जबतक साधनाके…..

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साधक किसे कहते हैं ? (भाग – ८)


वाचालता, यह एक दुर्गुण है । साधनाकालमें अन्तर्मुख होने हेतु मितभाषी होना या जितना आवश्यक हो उतना बोलना, अति आवश्यक होता है । आज अनेक लोग जो थोडी-बहुत साधना करते हैं, वे अपनी साधनासे अर्जित शक्तिको अनावश्यक…..

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साधक किसे कहते हैं ? (भाग – ६)


साधकत्वके गुणोंको शीघ्रतासे विकसित करने हेतु या आत्मसात करने हेतु समष्टिमें रहना अधिक पोषक सिद्ध होता है । समष्टिमें रहनेका एक उत्तम साधन है, किसी सन्तके आश्रममें रहना । जब हम आश्रममें रहते हैं तो जो साधक हमसे…..

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साधक किसे कहते है ?  (भाग – ४)


सत्सेवासे (सन्त कार्य या ईश्वरीय कार्य या धर्मकार्य) ईश्वरीय कृपाका सम्पादन होता है;  अतः अध्यात्मिक प्रगतिमें इसका विशेष महत्त्व है । सेवा, बडी या छोटी, प्रमुख या गौण नहीं होती है; सेवा, सेवा होती है; अतः सत्सेवाके मध्य जो……

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साधक किसे कहते हैं ?  (भाग – ५)


गुरु या ईश्वरके प्रति प्रत्येक परिस्थितिमें निर्विकल्प रहनेवाला ही साधक कहलानेका अधिकारी होता है । संस्कृतमें एक सुवचन है, ‘ईश्वरं यत् करोति शोभनम् करोति’ अर्थात ईश्वर जो करते हैं, वह अच्छा ही करते हैं । गुरु, ईश्वरके प्रतिनिधि……

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साधक किसे कहते हैं ? (भाग – ३)  


साधकमें सीखनेकी एवं पूछकर करनेकी प्रवृत्ति होती है । जिसमें सीखनेकी वृत्ति नहीं होती, ईश्वर या गुरु उसे कभी भी सिखाते नहीं है एवं जिसमें पूछकर करनेकी प्रवृत्ति नहीं होती है, उसका बहुमूल्य समय अपने मनके अनुसार कृतियोंको कर…..

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गुरु साधकका मनोलय करता है


अहंकारी व्यक्ति किसी गुरुकी शरणमें रहकर साधना नहीं कर सकता है; क्योंकि गुरु तो प्रत्येक क्षण साधकके मन और अहंपर वारकर इन दोनोंका विलय करते हैं ! अहंकारी अधिकतर मनानुसार साधना ही करता है ।

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सद्गुरु अपने सत्शिष्योंंको कभी नहीं छोडते


जैसे एक शेरनी अपने बच्चेको मुंहमें ले ले, तो वह उसे नहीं छोडती, उसीप्रकार शिष्यमें यदि पात्रता हो और वह  गुरुको छोडना भी चाहे तो गुरु उसे नहीं छोडते । सन्त कबीरदासने कहा है, गुरु मिलना अपेक्षाकृत सरल है, सत्शिष्य मिलना अति दुर्लभ है; अतः शिष्य बनने हेतु अपने अन्दर मुमुक्षुत्व, दृढता, आज्ञापालन, निडरता, नम्रता, […]

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साधक किसे कहते हैं ?


साधकको कोई अधिकार नहीं होता, मात्र कर्तव्य होता है । एक साधकका भाव कैसा होना चाहिए ? हमारा सब कुछ हमारे श्रीगुरुका है एवं श्रीगुरुका सर्वस्व मेरा नहीं, अपितु गुरुकार्य हेतु है; अतः उसपर व्यष्टि स्तरपर हमारा कोई अधिकार नहीं ! गुरु हमें जो भी देते हैं उसका सदुपयोग अपनी व्यक्तिगत स्वार्थसिद्धि हेतु नहीं अपितु गुरुकार्य […]

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