अपनी चूकोंको स्वीकार करनेवाला
साधक जीव अन्तर्मुखी और विनम्र होता है, इस कारण वह अपनी चूकोंको स्वीकार करनेमें संकोच नहीं करता, इतना ही नहीं, वह अपनी चूकोंको प्रमाणिकतासे……….
पारदर्शी होना
झूठ बोलना, अपनी चूकोंको छुपाना, झूठा दिखावा करना, अपने कार्य प्रणालीको पारदर्शी न रखना, यह सब किसी व्यक्तिके दोहरे चरित्रको दर्शाता है और ये तीव्र अहंके लक्षण हैं, जिसमें यह जितना अधिक होता है, उसमें साधकत्वका प्रमाण………
आज्ञापालन करनेवाला! साधकके सभी गुणोंमें सबसे प्रमुख गुण है, आज्ञापालन !
इतिहास साक्षी है कि जिस भी शिष्यने अपने गुरुकी आज्ञाका पालनकर साधना की है, उसका कल्याण निश्चित ही हुआ है ! वस्तुत: गुरु-शिष्य परम्परामें गुरु अपने ज्ञान, भक्ति और वैराग्यकी थाती उन्हें ही देते हैं जो गुरुके मनमें……
गुरुप्राप्ति हेतु सबसे आवश्यक घटक है, शिष्यके गुणवाला होना | यदि यह गुण न हो तो गुरुप्राप्ति कभी नहीं हो सकती है | शिष्यके गुण प्रगत अवस्थाके साधकोंमें होता है; इसलिए प्रथम साधक, तत्पश्चात………
गुरुसेवकका पद इस ब्रह्माण्डका सर्वोच्च पद होता है, उसे पानेके पश्चात कुछ भी पानेकी इच्छा शेष नहीं रहती है | गुरुसेवामें लीन रहनेमें जो आनंद आता है वह किसी भी योगमार्ग से साधना करनेपर नहीं आता है, यह अवस्था एक प्रकारसे जागृत समाधिकी होती है ….
हमारे गुरु किसीको गुरुमन्त्र नहीं देते हैं, वे यदि किसीको अति आवश्यक हो तो अवश्य ही कुछ विशेष जप बताते हैं; किन्तु सामान्यत: हमारे श्रीगुरुके यहां गुरुमंत्र देनेकी पद्धति….