गुरु, शिष्य एवं साधक

साधकके गुण (भाग-५)


अपनी चूकोंको स्वीकार करनेवाला

साधक जीव अन्तर्मुखी और विनम्र होता है, इस कारण वह अपनी चूकोंको स्वीकार करनेमें संकोच नहीं करता, इतना ही नहीं, वह अपनी चूकोंको प्रमाणिकतासे……….

आगे पढें

साधकके गुण (भाग-४)


पारदर्शी होना

झूठ बोलना, अपनी चूकोंको छुपाना, झूठा दिखावा करना, अपने कार्य प्रणालीको पारदर्शी न रखना, यह सब किसी व्यक्तिके दोहरे चरित्रको दर्शाता है और ये तीव्र अहंके लक्षण हैं, जिसमें यह जितना अधिक होता है, उसमें साधकत्वका प्रमाण………

आगे पढें

साधकके गुण (भाग-३)


आज्ञापालन करनेवाला! साधकके सभी गुणोंमें सबसे प्रमुख गुण है, आज्ञापालन !

इतिहास साक्षी है कि जिस भी शिष्यने अपने गुरुकी आज्ञाका पालनकर साधना की है, उसका कल्याण निश्चित ही हुआ है ! वस्तुत: गुरु-शिष्य परम्परामें गुरु अपने ज्ञान, भक्ति और वैराग्यकी थाती उन्हें ही देते हैं जो गुरुके मनमें……

आगे पढें

साधकके गुण (भाग-२)


समयके महत्त्वको जाननेवाला
सर्व सामान्य व्यक्ति जबतक साधना नहीं करता है, वह अपना जीवन संसारमें उपलब्ध शारीरिक या बौद्धिक सुखको पानेमें व्यतीत करता है । इसके विपरीत, साधकको यह ज्ञात होता है कि ८४ लाख योनिके पश्चात मनुष्यका………

आगे पढें

साधकके गुण (भाग-१)


कार्यपद्धतिका पालन करना, धर्मपालन या कर्तव्यपालन करने समान ही है | सत्ययुगमें जबसे मनुष्य अपने कर्तव्यपालनमें कमी करने लगे, तभीसे राजाकी कल्पना आरम्भ हुई | क्या आपको ज्ञात है कि जबतक मनुष्य अपने कर्तव्योंका पालन स्वयं प्रेरित होकर करता……..

आगे पढें

गुरु या सन्त किसे नहीं मिलते हैं ? (भाग – ३)


अहंकारियोंको गुरु या सन्त नहीं मिलते हैं अपितु ऐसा कहना अधिक उचित होगा कि वे अपने अहंकारके इतने अधीन होते हैं कि वे आत्मज्ञानी सन्तके समक्ष भी झुक नहीं सकते हैं ! स्वयंको श्रेष्ठ समझना……..

आगे पढें

गुरु या सन्त किसे नहीं मिलते हैं ? (भाग – २)


गुरुप्राप्ति हेतु सबसे आवश्यक घटक है, शिष्यके गुणवाला होना | यदि यह गुण न हो तो गुरुप्राप्ति कभी नहीं हो सकती है | शिष्यके गुण प्रगत अवस्थाके साधकोंमें होता है; इसलिए प्रथम साधक, तत्पश्चात………

आगे पढें

गुरु या सन्त किसे नहीं मिलते हैं ? (भाग – १)


अति बुद्धिवादीको गुरु नहीं मिलते हैं !
  जो व्यक्ति अपनी बुद्धिका आवश्यकतासे अधिक उपयोग करते हैं, वे सन्तोंको भी बुद्धिसे समझनेका ‘निरर्थक’ प्रयास ही नहीं करते, मैंने तो देखा है कि वे बिना साधनाके आधारके या बिना शास्त्रोंको आत्मसात किए, सन्तोंसे वाद-विवाद…..

आगे पढें

गुरुसेवकका पद इस ब्रह्माण्डका सर्वोच्च पद !


गुरुसेवकका पद इस ब्रह्माण्डका सर्वोच्च पद होता है, उसे पानेके पश्चात कुछ भी पानेकी इच्छा शेष नहीं रहती है | गुरुसेवामें लीन रहनेमें जो आनंद आता है वह किसी भी योगमार्ग से साधना करनेपर नहीं आता है, यह अवस्था एक प्रकारसे जागृत समाधिकी होती है  ….

आगे पढें

कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या आपके गुरुने आपको गुरुमंत्र दिया है ? 


हमारे गुरु किसीको गुरुमन्त्र नहीं देते हैं, वे यदि किसीको अति आवश्यक हो तो अवश्य ही कुछ विशेष जप बताते हैं; किन्तु सामान्यत: हमारे श्रीगुरुके यहां गुरुमंत्र देनेकी पद्धति….

आगे पढें

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution