शास्त्र वचन

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उत्तमानेव  सेवेत  प्राप्तकाले  तु   मध्यमान् । अधमांस्तु न सेवेत य इच्छेद् भूतिमात्मनः ॥ अर्थ : देवगुरु दत्तात्रेय कहते हैं : जो अपनी ऐश्वर्यवृद्धि चाहता है, वह उत्तम पुरुषोंकी ही सेवा करे, समय पडनेपर मध्यम पुरुषोंकी भी सेवा कर ले; परन्तु अधम पुरुषोंकी सेवा कदापि न करे ।

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यः कश्चिदप्यसम्बद्धो मित्रभावेन वर्तते । स एव बन्धुस्तन्मित्रं सा गतिस्तत् परायणम् ॥ अर्थ : विदुर, धृतराष्ट्रसे कहते हैं : पहलेसे कोई सम्बन्ध न होनेपर भी जो मित्रताका व्यवहार करे, वही बन्धु, वही मित्र, वही सहारा और वही आश्रय है ।

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वाग्दण्डं  प्रथमं  कुर्यात्  धिग्दण्डं तदनन्तरम् । तृतीयं   धनदण्डं   तु   वधदण्डमतः   परम् ॥ अर्थ : राजाको पहले वाग्दण्ड करना, उसके पश्चात धिक्-दण्ड,  तत्पश्चात धन-दण्ड और अन्तमें ‘वध-दण्ड’ देना चाहिए ।

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अप्रमत्तश्च यो राजा सर्वज्ञो विजितेन्द्रियः । कृतज्ञो धर्मशीलश्च स राजा तिष्ठते चिरम् ॥ अर्थ : जो राजा अप्रमत्त, सर्वज्ञ, जितेन्द्रिय, कृतज्ञ और धार्मिक है, वह लम्बे कार्यकालतक राज्य करता है ।

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असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मामृतं गमय । अर्थ : हे परमात्मन् ! मुझे असत्यसे सत्यकी ओर ले चलिए, मुझे अन्धकारसे प्रकाशकी ओर ले चलिए, मुझे अपूर्णतासे (जीवात्मदशासे ) पूर्णताकी (शिवत्वकी) ओर ले चलिए ।

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अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् । स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङमयं तप उच्यते ॥ अर्थ : उद्वेगको जन्म न देनेवाले, यथार्थ, प्रिय और हितकारक वचन (बोलना), (शास्त्रोंका) स्वाध्याय और अभ्यास करना, यह वाङ्मयीन तप है ।

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पुत्र इव पितु र्गेहे विषये यस्य मानवाः। निर्भया विचरिष्यन्ति स राजा राजसत्तमः॥ अर्थ : पुत्र जैसे पिताके घरपर निर्भय होता है, वैसे ही जिस राज्यके लोग निर्भय होकर विचरते (घूमते) हैं, वह राजा श्रेष्ठ राजा होता है ।

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अन्नाद भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः । यज्ञाद भवति पर्जन्यो  यज्ञः  कर्मसमुद्भवः ।। अर्थ : सारे प्राणी अन्नपर आश्रित हैं, जो वर्षासे उत्पन्न होता है । वर्षा यज्ञ सम्पन्न करनेसे होती है और यज्ञ नियत कर्मोंसे उत्पन्न होता है । ऐसे प्रसादयुक्त अन्नसे जीवमें अशुद्धियां नहीं आती हैं ।

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सदानुरक्तप्रकृतिः       प्रजापालनतत्परः। विनीतात्मा हिनृपतिः भूयसीं श्रियमश्नुते॥ अर्थ : प्रजापर सदैव प्रेम रखनेवाला, प्रजापालनमें तत्पर,  विनीत राजा बहुत लक्ष्मी प्राप्त करता है ।

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सदानुरक्तप्रकृतिः  प्रजापालनतत्परः। विनीतात्मा हिनृपतिः भूयसीं श्रियमश्नुते॥ अर्थ : प्रजापर सदैव प्रेम रखनेवाला, प्रजापालनमें तत्पर,  विनीत राजा बहुत लक्ष्मी प्राप्त करता है ।

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