शंका समाधान

शंका समाधान – क्या मैं वाहन चलाते समय ‘श्रीगुरु देव दत्त’का जप कर सकता हूं ?

क्या मैं वाहन चलाते समय 'श्रीगुरु देव दत्त'का जप कर सकता हूं ? - तेजस प्रजापति, वडोदरा, गुजरात


   आप निश्चित ही ‘श्रीगुरुदेव दत्त’का जप वाहन चलाते समय कर सकते हैं । वाहन चलाते समय ही क्यों ?, आप कभी भी यह नामजप कर सकते हैं, जैसे दन्तधावन या भ्रमण करते समय, भोजन बनाते या खाते समय, स्नान करते समय या अन्य कोई भी शारीरिक श्रमवाले कार्य करते समय आप यह नामजप कर […]

आगे पढें

शंका समाधान – बहुत अधिक संख्यामें लाल चिंटीयोंका निवास होनेपर क्या करें ?

मेरे वडोदरा निवासके परिसरमें वर्षोंसे बहुत अधिक संख्यामें लाल चिंटीयोंका निवास है । उन्हें मारना नहीं है। कई प्राकृतिक उपाय किए जैसे कि आटा, आटा-नमक, हल्दी ! उसी परिसारमें देशी गीर गौमाताएं (मां-बेटी) भी रहीं । उनका भरपूर मुत्र भी भूमिमें गया है और उनका गोमय भी मिट्टीमें मिला है । साथ ही घरमें चिडचिडापन, सिरकी वेदना, दुर्बलता, उर्जाकी न्यूनता रहती है । कृपया कोई उपाय बताएं कि ये चींटियां सस्नेह यहांसे चली जाएं । - रोहित पारेख, वडोदरा


रोहितजी मैं यही तो सभी गोभाक्तोंसे कहती हूं कि प्रत्येक समस्याका समाधान गौमातासे नहीं हो सकता है ! उनकी भी अपनी मर्यादा है ! यदि सब कुछ उनसे साध्य हो जाता तो ईश्वर इस ब्रह्माण्डमें देवी-देवताओंका निर्माण ही नहीं करते | मैं जानती हूं कि आप हिंदुत्वनिष्ठ है और गौ भक्त भी ! तो सर्वप्रथम […]

आगे पढें

शंका समाधान – जपको सांसके साथ जोडकर कर सकते हैं क्या ?

मेरी एक शंकाका कृपया समाधान करें | जब भी मैं सांसके साथ जोडकर जप करता हूं तो मेरा ध्यान जपसे हटकर सांसपर चला जाता है और उसका पश्चात जप नहीं हो पाता है एवं सांसपर मन केन्द्रित हो जाता है, ऐसी स्थितिमें क्या मैं जपको सांसके साथ जोडकर न करूं क्या ?


सर्वप्रथम यह जान लें कि कोई भी साधना मार्गका अवलंबन साधक अपने मनको एकाग्र करने हेतु करते हैं ! और मनका एकाग्र होना अर्थात मनका निर्विचार होना ही है वह जितनी अधिक समय उस स्थितिमें रहता है वह साधनाकी दृष्टिसे उतना ही उत्तम होता है | सांसके साथ नामजप जोडकर करनेका उद्देश्य यही होता है […]

आगे पढें

आराध्यदेव किस देवताको मानें ?

अपनी उपास्य देवता हम निर्धारित करते हैं या गुरु निर्धारीत करते हैं, कृपया बतानेकी कृपा करें और सारे देवताओंमें किसे आराध्यदेव मानें ? – दीपाली गोंडाजे, सांगली, महाराष्ट्र


अध्यात्ममें मनानुसार साधनाको अंश मात्र भी महत्व नहीं है ! ईश्वर हमें उसी कुलमें जन्म देते हैं जिस कुलमें जन्म लेकर उस कुलकी कुलदेवताकी उपासना करके सर्वाधिक प्रगति कर सकते हैं ! हम सबके सूक्ष्म पिण्डमें जिस घटककी न्यूनता होती है, उसीकी साधना करनेसे हमारी शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति होती है इसलिए हमें उसी कुलमें जन्म […]

आगे पढें

शंका समाधान – एक व्यक्तिने पूछा है कि हम और आप सब मैकालेकी शिक्षण पद्धतिसे ही शिक्षित हुए हैं तो भी आप उसे आसुरी शिक्ष्ण पद्धति क्यों कहती हैं ?

एक व्यक्तिने पूछा है कि हम और आप सब मैकालेकी शिक्षण पद्धतिसे ही शिक्षित हुए हैं तो भी आप उसे आसुरी शिक्ष्ण पद्धति क्यों कहती हैं ?


     यदि मैं और आप मांस भक्षण करें तो क्या वह तामसिकसे सात्त्विक आहार हो जायेगा ? नहीं  न ।  उसीप्रकार आज समाजमें जो भी सात्त्विक हैं, परोपकारी या राष्ट्रनिष्ठ हैं, वे इस शिक्षण पद्धतिके कारण नहीं है, कुछके पूर्व जन्मके संस्कार बहुत ही दृढ थे; इसलिए इस आसुरी शिक्ष्ण पद्धतिसे शिक्षित होनेपर भी […]

आगे पढें

शंका समाधान- साधना करनेसे अनिष्ट शक्तियां अनिष्ट प्रभाव डाल रही हो तो क्या कुछ समयके लिए साधना बंद करनी चाहिए?

यदि साधना करनेसे अनिष्ट शक्तियां मुझपर अनिष्ट प्रभाव डाल रही हे और मेरे सारे कार्य खराब कर रही है, तो क्या कुछ समयके लिए साधना बंद कर देनी चाहिए ? – अभिषेक, पुणे


तीव्र कष्टमें नामजप, पूजा-पाठ इत्यादिसे विशेष लाभ नहीं होता है, इस हेतु किसी सन्तके कार्यमें तन, मन, धन और बुद्धिसे यथाशक्ति सेवा करें ! इससे…..

आगे पढें

क्रियमाण कर्म किसे कहते हैं ?

क्रियमाण कर्म किसे कहते हैं ? – विमेश पारेख, वडोदरा, गुजरात


संचितका अर्थ है पिछले सभी जन्मोंके कर्मका सम्पूर्ण या कुलयोग कुलयोग | उन कर्मोंसे एक छोटा सा अंश जो हम इस जन्ममें लेकर भोगने हेतु आते हैं उसे प्रारब्ध कहते हैं ! जैसे कोषागारमें (बैंकमें) एक चालू खाता और एक बचत खाता होता है वैसे ही प्रारब्ध चालू खाता है और संचित बचत………

आगे पढें

क्या कलियुगमें समद्रष्टा सन्त होते हैं?


एक पाठकने लिखा है कि कलियुगमें समद्रष्टा सन्त होते ही नहीं हैं !
वस्तुत: कलियुगके कालमें यह धरा मात्र और मात्र ऐसे सन्तोंके कारण ही टिकी है ! कलियुगमें एक नहीं अनेक समद्रष्टा सन्त हुए हैं । किन्तु ऐसे सन्तोंसे मिलना…..

आगे पढें

एक पाठकने पूछा है कि धर्मकार्य किसे कहते हैं ?


जिस कार्यसे जीवका ऐहिक और पारलौकिक कल्याण हो एवं जिससे समाज व्यवस्था उत्तम रहे, उसे धर्म कहते हैं, यह परिभाषा आद्य गुरु शंकराचार्यने दी है ! वस्तुत: इस परिभाषा अनुरूप कार्यको ही धर्मकार्य कहना चाहिए ! वैसे यदि आप किसी सन्तके कार्यसे जुडकर सेवा करते हैं तो वह भी धर्मकार्यकी ही श्रेणीमें आता है; क्योंकि […]

आगे पढें

क्या दुर्जनोंको प्रेमसे समझाकर परिस्थितिको परिवर्तित नहीं किया जा सकता है ?


एक पाठकने पूछा है, “व्यवस्था परिवर्तनके लिए क्रान्ति क्यों ? क्या दुर्जनोंको प्रेमसे समझाकर परिस्थितिको परिवर्तित नहीं किया जा सकता है ?” उत्तर बडा सरल है, क्या प्रभु श्री रामने और भगवान श्री कृष्णने रावण और दुर्योधनको प्रेमसे सुधारनेकी शिक्षा नहीं दी थी ?; परन्तु परिणाम क्या हुआ ? जब अवतारी राम और परमेश्वर सदृश […]

आगे पढें

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution