भारत कृषि प्रधान देश है, यहां अधिकांश जनसंख्या गांवोंमें निवास करती है और ६० से ६५ प्रतिशतसे अधिक लोगोंकी जीविकोपार्जनका माध्यम खेती ही है । दिन-प्रतिदिन जनसंख्या वृद्धिके साथ-साथ खाद्यानोंकी मांग भी बढ रही है, अधिकाधिक उत्पादनकी होडमें रसायनिक उर्वरकों, फसलमें होनेवाले रोगके निवारण हेतु कीटनाशकोंका कृषिमें उपयोग बढता जा रहा है । अज्ञानतावश इस […]
आनेवाले आपातकालको ध्यानमें रखकर हम यह नूतन लेखमाला आरम्भ कर रहे हैं । इसे पढकर आप भी अपने घरकी ‘बालकनी’, छतपर कुण्डीमें (गमलेमें) या अन्य उपलब्ध संसाधनोंमें या आंगनमें या आपके पास भूमि हो तो उसमें भी सीखकर जैविक खेती आरम्भ कर सकते हैं, यही इस लेखमालाको प्रकाशित करनेका हमारा एकमात्र उद्देश्य है । सम्पूर्ण […]
श्रेष्ठ सन्तानकी उत्पत्तिके लिए हमारे मनीषियोंने अपने तपोबलसे प्राप्त ज्ञानद्वारा कुछ धार्मिक कर्म स्थापित किए हैं, जिन्हें हिन्दू धर्मग्रन्थोंमें देखा भी जा सकता है । इन्हीं नियमोंका पालन करते हुए विधिनुसार सन्तानोत्पत्तिके लिए आवश्यक कर्म करना ही गर्भाधान संस्कार कहलाता है । जैसे ही पुरुष व स्त्रीका समागम सफल होता है, जीवकी निष्पत्ति होती है […]
गर्भस्थापनके पश्चात अनेक प्रकारके प्राकृतिक दोषोंके एवं आनिष्ट शक्तियोंके आक्रमण होते हैं, जिनसे बचनेके लिए यह संस्कार किया जाता है । जिससे गर्भ सुरक्षित रहता है । माता-पिताद्वारा खाये अन्न एवं विचारोंका भी गर्भस्थ शिशुपर प्रभाव पडता है । माता-पिताके रज-वीर्यके दोषपूर्ण होनेका कारण उनका धर्मनिष्ठ न होना, मादक द्र्व्योंका सेवन तथा अशुद्ध खानपान होता […]
आजकल कामवासनासे ग्रस्त मनुष्य गर्भाधान संस्कारपर ध्यान नहीं देता है, जिसके चलते उसकी सन्तानका भविष्य अनिश्चित या अन्धकारमें ही रहता है । वस्तुतः यह संस्कार सबसे महत्त्वपूर्ण होता है । विवाहके पश्चात पति और पत्नीको मिलकर अपनी भावी सन्ततिके विषयमें सोच-विचार करना चाहिए । बच्चेके जन्मके पहले स्त्री और पुरुषको अपनी शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्यको […]
समाजमें धर्मप्रसारके मध्य मैंने पाया है कि आज गृहस्थोंको पुनः सोलह संस्कारोंका महत्त्व बताया जाना चाहिए तभी उत्तम सन्ततिकी प्राप्ति सम्भव है । इसलिए यह लेखमाला आरम्भ कर रही हूं, कृपया इसका प्रसार अधिकसे अधिक लोगोंमें करें यह नम्र विनती है । सर्वप्रथम गर्भाधान संस्कारका महत्त्व समझ लें ! गर्भाधान संस्कारके सम्बन्धमें स्मृतिसंग्रहमें लिखा है […]
वर्तमान कालमें एक अनुचित प्रचलन आरम्भ हुआ है और वह है विवाहके उपरान्त नवविवाहित जोडेका कहीं भ्रमण हेतु जाना जिसे आजकल ‘हनीमून’ कहते हैं । पूर्वकालमें विवाहित जोडा अपने कुलदेवी या इष्टदेवताके देवालय जाता करते थे और यदि वह उनके मूल स्थानसे दूर हो तो वे किसी सगे-सम्बन्धीके घर रुकते थे, वहीं आज प्रेतबाधित विश्रामालयमें […]
अनालस्यं ब्रह्मचर्यं शीलं गुरुजनादरः । स्वावलम्बः दृढाभ्यासः षडेते छात्र सद्गुणाः ॥ अर्थ : अनालस्य, ब्रह्मचर्य, शील, गुरुजनके लिए आदर, स्वावलम्बन और दृढ अभ्यास, ये छह छात्रके सद्गुण हैं । वर्तमान कालकी शिक्षण पद्धतिमें ऐसे गुणोंको आत्मसात करने हेतु नहीं सिखाया जाता है; इसलिए आजकी युवा पीढी आलसी होती है । आप उन्हें पांच किलो तरकारी […]
कुछ समय पहले हम एक व्यक्तिके पुष्प (अस्थियां) लेकर प्रयागराज गए थे । हमारे साथ एक नगरके कुछ प्रतिष्ठित धनाढ्य भी गए थे । अस्थि विसर्जनसे पूर्व एक छोटीसी संक्षिप्त श्राद्धविधि की गई और उसके पश्चात पुरोहितने दान हेतु जो इच्छा है, वह अर्पण करने हेतु कहा । वहां उपस्थित सभी पुरुषोंको पुरोहितको दान देनेके […]
दो दिवस पूर्व इन्दौरकी एक ‘दूकान’में कुछ आवश्यक सामग्री क्रय करने गई थी । उस ‘दूकान’के स्वामीने मुझे दीदी कहकर सम्बोधितकर अपनी सामग्री दी । आप सोच रहे होंगे इसमें विशेष बात क्या है ? धर्मप्रसारके मध्य यहां-वहां जाना होता ही है और आज उत्तर भारतके छोटे-छोटे उपनगरोंमें (कस्बोंमें) पुरुषवर्ग स्त्रियोंको ‘मैडम’ कहकर सम्बोधित करने […]